लोकंतत्र की रक्षा के लिए पीएम मोदी का उपवास
वर्तमान समय में देश की राजनीति व सत्ता विपक्ष का रवैया बेहद शर्मनाक दौर से गुजर रहा है। सभी दल और नेता केवल अपनी ही राजनीति और सोशल मीडिया तथा टीवी चैनलों की टीआरपी की अंधी दौड़ में अपने विचारों और तर्कशक्ति से काफी पीछे चले गये हैं। सबसे बड़ी दुर्दशा तो विपक्ष की हो रही है। केंद्र सरकार भाजपा व पीएम मोदी के खिलाफ ऐसे शब्दों व वाक्यों का प्रयोग किया जा रहा है कि कहीं से लगता ही नहीं कि ये सभी नेतागण भारत की जनता के भाग्य विधाता हैं। अभी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दलितों पर हो रहे अत्याचारों व अन्य विभिन्न मुद्दों को लेकर उपवास किया, लेकिन वह छोले-भटूरे के शौकीन लापरवाह कांग्रेसियों की भेंट चढ़ गया।
एक उपवास ने तो राहुल गांधी व कांग्रेस की जगहंसाई तो करवा दी थी, लेकिन अब बारी सरकार की थी। संसद सत्र न चलने देने के विरोध में बेहद दुःखी होकर पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने सभी साथी सांसदों व विधायकों तथा कार्यकर्ताओं के साथ लोकतंत्र को बचाने के लिए व विपक्ष के रवैये का विरोध जताने के लिये उपवास का आयोजन किया। इस अवसर पर पीएम मोदी ने चेन्नई का दौरा किया तथा कई कार्यक्रमों में हिस्सा भी लिया। यह बात अलग है कावेरी जल विववाद के चलते वहां पर कुछ स्थानीय संगठनों की ओर से उन्हें काले झंडे भी दिखाये गये। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कर्नाटक में उपवास किया। जिस दिन से सरकार ने उपवास रखने का निर्णय लिया, उसी दिन से कांग्रेसी व सभी विरोधी दलों के नेता मीडिया व सोशल मीडिया में अपने ट्विट व प्रेसनोट के माध्यम से कहर बरपा रहे हैं।
ये घटनायें बता रही हैं कि वर्तमान समय में सरकार व विपक्ष के बीच किस प्रकार से संवेदनहीनता का अभाव गहराता जा रहा है तथा असहिष्णुता का भाव भी गहरा होता जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि देश को चलाने के लिए सरकार और विपक्ष के बीच संवाद और सम्मान की जो बात थी वह अब समाप्त हो गयी है। इस समय भारतीय राजनीति में ऐसा कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति नहीं दिखायी पड़ रहा, जो आगे सरकार और विपक्ष के बीच संवाद कायम करे और देशहित में संसद चालू हो। यह समय संकट के दौर से गुजर रहा है जिसे विपक्षी दलों की ओर से जानबूझकर खड़ा किया गया लग रहा है। सरकार व विपक्ष दोनों ही अपने उपवास राजनीति के माध्यम से अपने मुद्दों को जनता के बीच ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। इन प्रयासों में कौन सबसे सफल होता है, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।
संसद का बजट सत्र जिस प्रकार से हंगामों के कारण बर्बाद हुआ है वह लोकतंत्र के लिए देशहित के लिए जनता के लिए बेहद शर्मनाक है। दूसरा सत्र तो बेतहाशा हंगामों के कारण एक दिन भी ठीक से नहीं चल सका। इस सत्र में बीजेपी की दूसरे सहयोगी दल आंध्र प्रदेश की तेलुगुदेशम पार्टी ने जहां अपना समर्थन वापस लिया, वहीं दूसरी ओर सबसे अधिक हंगामा यदि किसी दल ने किया तो वह दक्षिण भारत के सांसदों की ओर से किया गया था। संसद का मौजूदा सत्र बता रहा है कि छोटे छोटे क्षेत्रीय दलों की अति राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते देश की संसद बंधक हो जाती है, चाहे आपके पास कितना ही अधिक बहुमत क्यों न हो। आंध्र्र प्रदेश के सांसद राज्य को विशेष दर्जे की मांग को लेकर प्रदर्शन करते रहे वहीं तमिलनाडु के सांसदों ने कावेरी जल विवाद को लेकर अपना प्रदर्शन जारी रखा।
संसद को बाधित करने में कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों को बड़ा आनंद आ रहा था। संसद सत्र न चलने के कारण जहां एनडीए सांसदों ने अपना वेतन न लेने का ऐलान किया, वहीं दूसरी ओर सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, शिवसेना व विरोधी दलों के सांसदों ने अपना वेतन लेने में ही अपना हित समझा यानी की चोरी भी और डाका भी यह सांसद डाल रहे हैं। राज्यसभा से रिटायर हुए सांसद सचिन ने तो अपना पूरा वेतन देशहित में पीएम कोष में दान कर दिया। सचिन ने अपने वेतन दान करने से संसद व सांसदों के सामने एक अनुकरणीय नजीर पेश कर दी, लेकिन इसका प्रभाव भी विरोधी दलों पर नहीं पड़ा।
5 मार्च से शुरू हुए विगत बजट सत्र में 23 बैठकें निर्घारित थीं। हंगामे के कारण सब बर्बाद हो गयीें। करीब 250 घंटे बर्बाद हो गये। विगत 18 वर्षों में यह संसद के भीतर सबसे कम कामकाज का रिकार्ड रहा है। बजट सत्र के पहले चरण में लोकसभा में 134 फीसदी काम हुआ था वहीं वहीं राज्यसभा में 96 फीसदी काम हुआ था। लेकिन संसद के दूसरे सत्र में पता नहीं ऐसा क्या हो गया कि अचानक से विपक्ष ने संसद ही नहीं चलने दी। संसद न चलने से सरकार व विपक्ष दोनों को ही नुकसान हो रहा है। लेकिन विपक्ष को लगता है कि वह संसद को ठप कराकर मोदी सरकार को अपने कदमों में झुका लेगा लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं होने जा रहा।
आज कांग्रेसी आरोप लगा रहे हैं कि सरकार संसद नहीं चलने दे रही है तथा वह साजिशन संसद को ठप करा रही है। विपक्ष का यह आरोप बेहद बचकाना हे तथा अपने आप को बचाने का मूर्खतापूर्ण तर्क है। सरकार कभी नहीं चाहेगी संसद का सत्र न चले। यह विपक्ष का ही काम होता है कि संसद ठप रहे तो ज्यादा अच्छा रहेगा। अभी तक राज्यसभा में बीजेपी के पास प्र्याप्त संख्या बल नहीं था, लेकिन वहां पर अब बीजेपी मजबूत हो रही है। विपक्ष ने सरकार का कामकाज रोककर देश विरोधी व गरीब विरोधी काम किया है। विपक्ष चाहता है कि सरकार के विधेयक पारित न हो सके, वह कानून न बन सके। यदि सरकार के कानून संसद से पारित हो गये तो वह और अधिक मजबूत हो जायेगी। फिर विपक्ष के पास कोई मुददा नहीं रह जायेगा। हंगामे के कारण भ्रष्टाचार रोकथाम विधेयक नहीं पारित हो सका। यहां तक कि जब ईराक के मोसुल में 39 भारतीयों की दुःखद मौत का समाचार देने के लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज खड़ी हुईं, तो वहां पर भी विपक्ष की ओर से बाधा डाली गयी। आज विपक्ष की ओर से सरकार के हर काम पर बाधा डाली जा रही है। यही कारण है कि जब बीजेपी नेताओं ने देशभर में अपना उपवास प्रारम्भ किया, तब वहां पर नारे लगाये गये कि न काम किया है और न ही करने देंगे।
वहीं विरोधी दलों ने अपनी बयानबाजी से पीएम मोदी व बीजेपी के उपवास को प्रहसन बनाने का पूरा प्रयास किया, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिल पायी। कांग्रेस ने पीएम मोदी व बीजेपी के उपवास को जहां कोरा स्वांग बताया, वहीं सहयोगी दल शिवसेना व तेलुगूदेशम ने भी तीखी बयानबाजी की। यह देश के इतिहास में पहली बार हुआ कि एक प्रधानमंत्री को संसद न चलने पर और लोकतंत्र की रक्षा की खातिर उपवास पर बैठना पड़ा। हालांकि प्रदेश के कई मुख्यमंत्री पहले भी उपवास व भूख हड़ताल आदि पर बैठ चुके हैं। विपक्ष पीएम मोदी पर लगातार ट्विट पर ट्विट करके आरोप लगाता रहा। टीवी चैनलों पर भी खूब बहस हुई। जिसमें विरोधी दलों के नेता उन्नाव से कठुआ तक के गैंगरेप का मुद्दा उठा रहे थे, लेकिन संसद के समय की बर्बादी का कौन जिम्मेदार है इस पर बहस से बच रहे थे। विरोधी दलों के प्रवक्ता कह रहे थे कि पीएम मोदी बेटियों की सुरक्षा के लिए कब उपवास पर बैठेंगे?
इन विरोधी दलों की सरकारें जब-जब सत्ता में रहीं, तब भी ये घटनायें घटतीं रहती थीं और काफी वीभत्स तरीके से। अपने दिन सब विरोधी दल भूल गये हैं। वैसे भी सरकार और विपक्ष के बीच जिस प्रकार से संवादहीनता भंग हो गयी हे वह लोकंतत्र व देशहित में कतई नहीं है। सरकार व विपक्ष के बीच संसद चलाने को लेकर जल्दी सहमति बने वह अच्छा होगा। यदि ऐसा संभव नहीं है तो संसद का सम्मान बचाये रखने की खातिर सरकार को संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर अपने विधेयकों का पारण करवाना चाहिये व समितियों का कामकाज पूरा करवाना चाहिए। खबर है कि संसद के दूसरे बजट सत्र में बोफोर्स मामले को लेकर एक समिति की रिपोर्ट आनी थी, जिसे रोकने के लिए भी हंगामा किया गया। नीरव मोदी घोटालों में कांग्रेसियों पर आंच आ रही थी, वह सब सुनने का साहस कांग्रेस के पास नहीं था, यही कारण है कि संसद को ठप कर दिया गया।
— मृत्युंजय दीक्षित