गज़ल
रोटियां कोई मुफ्त की खाकर बिगड़ गया
कोई हाकिमों की बातों में आकर बिगड़ गया
मेहनत में यहां जिसने भी लगाया नहीं दिल
उस आलसी इंसां का मुकद्दर बिगड़ गया
अच्छा-खासा आदमी था काम का मैं भी
इश्क के चक्कर में उलझकर बिगड़ गया
बंदिशों से मर गईं बेटी की हसरतें
बेटा ज्यादा लाड से अक्सर बिगड़ गया
आने लगा मज़ा जो वाहवाही में मुझे
कहा आलिमों ने ये शायर बिगड़ गया
— भरत मल्होत्रा