लघुकथा

खोखलापन

देखते-ही-देखते बीच बाजार आगरा की एक इमारत अचानक भरभराकर धराशायी हो गई. पहली बार में यह समझना मुश्किल है कि ऐसा क्यों हुआ, लेकिन जब वजह सामने आई तो लोगों के होश उड़ गए. दरअसल, कई साल से इमारत के नीचे बिल बनाते-बनाते चूहों ने इसकी नींव को इतना कमजोर कर दिया था, कि तीन-मंजिला यह इमारत रविवार को जमींदोज हो गई.

सुनील ने भी यह खबर पढ़ी. उसे याद आया, कि उसका व्यापार भी कुछ इसी तरह खोखला हो गया था. उसके बुआ के बेटे ने कहा था- ”बड़े भैया, आपके बिजनेस में तो बहुत तरह के काम हैं, कुछ मेरे लिए जुगाड़ भी कर दीजिए न! बस यही जुगाड़ उसके लिए मुसीबत बन गया था. नौबत यहां तक पहुंच गई, कि एक दिन उसका एक लाख रुपये का चेक वापिस आ गया. अकाउंट खाली था, बुआ का बेटा भी फरार था, देनदार नदारद थे, लेनदार दरवाजा रोके खड़े थे. उसे चारों ओर खोखलेपन के सिवाय कुछ नजर नहीं आ रहा था

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “खोखलापन

  • लीला तिवानी

    अक्सर ऐसा होता देखा गया है कि जिसको सहारा दो, वह जिस थाली में खाता है, उसी में न केवल छेद करता है, बल्कि उसे पूर्णतया खोखला कर देता है और भनक भी नहीं पड़ने देता.

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