========वो दो बाहें=========
सांझ की सिकता पर,
नन्हे उज्ज्वल से कदम,
जब पड़ते थे डगमग ,
तब उन्हें थामने वाली,
दो सबल सी बाहें ………………. याद आता है…..
गर गलती से गिर जाता,
झट सीने से लग जाते,
माथे को उस पल चूमते,
पीठ को थे सहलाते,
फिर लेकर गोदी में
ध्यान से उनका देखना…………….. याद आता है…..
जब कभी क्षया में,
परछाई की विभ्रम होती,
मेरे भीत मन को,
शांत करने के लिए,
आगे बढ़ परछाई छूना,
मुझे समझाना सत्य बताना………… याद आता है…..