गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

रोग जाता ही नहीं कितनी दवा ली हमने
माँ के क़दमों में झुके और दुआ ली हमने
इस ज़माने ने सताया भी बहुत है मुझको
आग ये सीने की अश्कों से बुझा ली हमने
जब नजर आई नहीं ख्वाब में माँ की सूरत
अपनी आंखों से हर इक नींद हटा ली हमनें
देखने तो आज सभी आये तमाशा मेरा
जब से दीवार घरों में ही उठा ली हमने
तेरी चाहत में हुआ है हाल दिवानों जैसा
अपनी पगड़ी ही सरे आम उछाली हमनें
हर तरफ ही यूं नजर आने लगी उल्फ़त जब
दिल में नफरत थी मुहब्बत ही सजा ली हमने
खत्म हो जाये न ये दौर मुलाकातों का
ज़िंदगी बस तेरे वादे पे बिता दी हमने
माँ के क़दमों में ये सारा ही जहां दिखता है
बस तेरी याद में हस्ती भी मिटा ली हमने
खौफ था मुझको चरागों से ही घर जलने का
आग ‘अरविन्द’ घरों में ही लगा ली हमने

कुमार अरविन्द

कुमार अरविन्द

नाम - कुमार अरविन्द ( अरविन्द शुक्ला ) पिता का नाम - राम बहादुर शुक्ला पता - ग्राम - बंजरिया , पोस्ट विशुनपुर संगम , इंटियाथोक गोंडा यूपी ( 271202 ) शिक्षा - वनस्पति शास्त्र में परास्नातक लेखन शैली - गजल मोब. - 9415604118 दैनिक हमारा मेट्रो , वर्तमान अंकुर , राष्ट्रीय सहारा , दैनिक भास्कर अमर उजाला , अमर उजाला काव्य और बेव पत्रिकाओं जैसे कागज़ दिल , सावन , आदि में प्रकाशित