कविता

मैं गरीब हूँ बस यही पहचान मेरा है

।ओ साहब मैं गरीब हूँ बस यही पहचान मेरा है।।

हां गरीब मुझको सब कहते, मेरा कोई ईमान कहां है,
सपना देखा था इक घर का पर मेरा वह घर कहां हैं।
मां – बाप का बनूंगा सहारा, पर मेरा रोज़गार कहां है,
मेहनतकश मुझ गरीब का, अपना खेत खलिहान कहां है।
ओ साहब मैं गरीब हूं, बस यही पहचान मेरा है।

पढ़कर आगे बढ़ना मैं भी चाहूं, पर मेरा नसीब कहां है,
काम कराते पर मेरे शिक्षा का, किसी को परवाह कहां है।
मुंह मांगा मेहनताना दूंगा, बस आज भर काम पर आओ,
हूं बिमार कई दिनों से, लेकिन छुट्टी का अधिकार कहां है। ओ साहब मैं गरीब हूं, बस यही पहचान मेरा है।

सरकारी मदद भी आया, पर चला गया चतुरों के पास,
सब अपने में है मस्त किससे करें मदद की आस।
हो रहे नित्य दंगे फसाद, मानवता का ज्ञान कहां है,
किया जतन बहुतेरे मगर मुख पर मुस्कान कहां है।
ओ साहब मैं गरीब हूं, बस यही पहचान मेरा है।

संजय सिंह राजपूत
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8919231773

संजय सिंह राजपूत

ग्राम : दादर, थाना : सिकंदरपुर जिला : बलिया, उत्तर प्रदेश संपर्क: 8125313307, 8919231773 Email- [email protected]