गीतिका/ग़ज़ल

बहुत तड़पाते हैं मुझको ये दुनिया के उजाले अब ।

भँवर में डोलती कश्ती कोई कैसे संभाले अब ।
ये दिल करता है कर दूं खुद को तूफ़ां के हवाले अब ।

बहुत ही स्याह उसकी हिज़्र की हर रात लगती है,
चराग इक याद का उसकी ऐ मेरे दिल जला ले अब ।

अजब तासीर है कोई जो पल भर कम नहीं होती,
भला इस हाल से कैसे कोई खुद को निकाले अब ।

छुपाकर खुद को परदे में मेरा महबूब बैठा है,
करूँ मै क्या जतन आखिर जो वो परदा हटा ले  अब ।

सुकूँ मिलता है ‘नीरज’ अब तो आंखें बंद रखने में,
बहुत तड़पाते हैं मुझको ये दुनिया के उजाले अब ।

नीरज निश्चल

नीरज निश्चल

जन्म- एक जनवरी 1991 निवासी- लखनऊ शिक्षा - M.Sc. विधा - शायर सम्पादन - कवियों की मधुशाला पुस्तक