कविता

उसकी आहट

उसकी आहट सुनते ही
आज भी मन बहुत घबराता है
डर सा बना रहता है कि
कही फिर से ना चला जाये
छोड़ कर मुझे अकेला
किसी तरह संभाली थी खुद को
उसके जाने के बाद
आज फिर उसकी आहट
कही न आ जाये फिर से वो सुनामी
जो अस्त व्यस्त कर दे इस जिंदगी को
क्योकि जब भी तुम आये हो
मुझे सुकून सा मिलता है
लेकिन जब जाते हो तो
मेरी जिंदगी जिंदगी नही लगती
तुम्हारे जाने का दर्द
अन्दर ही अन्दर टिसता है
विरान सा हो जाता है मन
सुध बुध खोकर बस तुम्हे ही पुकारती हूँ
बहुत मुश्किल के बाद संभाल पायी हूँ खुद को
इसलिये आना है तो आओ लेकिन
कभी छोड़कर नही जाना
मै तुम्हारे आने से नही जाने से डरती हूँ
तुम सुन रहे हो न।
निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४