नीर हुआ गंभीर
सबके अपने दर्द है सबके अपने नीर ।
क्यों तू अपने दर्द पर नीर हुआ गभीर ।।
मतलबी के दिल मे कब था तेरा दर्द ।
जिससे उसका काम बने बस उसी के लिए उसके नीर ।।
नाटक ऐसे कर रहा जैसे हर लेगा सारे पीर ।
समय जरूरत का पड़े तो निकल गए उसके नीर ।।
चेहरे ऊपर नकली चेहरा अंदर छिपी है मक्कारी ।
पता नही नकली चेहरे से कैसे निकाले नीर ।।
पर ऐसे अय्यारों की तारीफ बहुत है यार ।
पता भी ना चले पर घाव करे ये गम्भीर ।।
— नीरज त्यागी