भला-भला सा लागे क्यों घनघोर अंधेरा
भला-भला सा लागे क्यों घनघोर अंधेरा
बेचैन मेरा दिल भटके पागल-पागल सा…….
अस्थिर मन को मेरे ऐसा लगता है।
बेचैन मेरा दिल भटके पागल-पागल सा……..
मैं सच कहता, है भीड़ बहुत, दुनिया के मेले में
फिर भी तन्हा मन मेरा, भटके पागल-पागल सा…….
रोकर भी विचलित मन को चैन मिले ना,
बेचैन मेरा दिल भटके पागल-पागल सा…….
जग पागल है या मैं ही हूँ इकलौता पागल,
अपनी चाहत के पीछे दौडूँ पागल-पागल सा…….
।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045