काश्मीर समस्या एक नासूर
पूत के पाँव पलने में देखे जाते हैं। आज लगभग सभी लोग अंग्रेजी के इस मुहाबरे से भी परिचित होंगे कि- “Morning shows the day” । कमोबेश आज देश में घटित एक विशेष राजनैतिक उठा-पटक की घटना के संदर्भ में विचारणीय तो हो ही जाता है। मूल प्रश्न राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय विरोध के अंतर्द्वंद में फँसा भारत। इनमें कश्मीर समस्या भी एक अहम मुद्दा है।
आधुनिक विज्ञान भी अपने विद्युतीय सिद्धान्त में स्पष्ट कर चुका है कि गरम और ठंढा तार आपस में मिल जाँय तो बिजली नहीं जलेगी। चुम्बकीय ध्रुवों ने भी आकर्षण-विकर्षण द्वारा यही सिद्ध किया है कि दोनों ध्रुवों में दूरियाँ ही बेहतर। यदि बिजली के दो तार और दोनों चुम्बकीय ध्रुव मिल जाँय तो ऐसा ही होता है जैसा वर्तमान में कश्मीर का राजयोग। जहाँ भारत से कश्मीर को अलग करने के पड़ोसी देश की मंशा और प्रयास में आतंकवाद को सहारे के तौर पर इस्तेमाल करने की योजना को अमली जामा पहनाने का पुरजोर प्रयास।
जिसकी शुरुआत अस्सी के दशक से ही हो चुकी थी। इसी योजना के तहत पहले दहशत और फिर कश्मीरी पंडितों का कश्मीर से पलायन पहले कदम रहे। पिछले कई दशकों से आतंकवाद के इर्द-गिर्द ही कश्मीर केंद्रित देश की राजनीति चक्कर काटती रही और राजनैतिक पार्टियाँ सत्ता की मलाई चाटती ही नहीं रही बल्कि आतंक के पोषक बनकर आर्थिक और मानसिक प्रोत्साहन देने से भी शायद ही बाज आई हों।
पड़ोसी देश तो अलगाववादियों की आग को हवा देती ही रही और राजनीतिज्ञ घी डालने से भी खुद को रोक नहीं सके। तब ही तो कोई स्वार्थवश पड़ोसी पाकिस्तान से सत्ताशीन कराने में सहयोग चाहता है तो कोई सत्ता पाने के बाद जीत की खुशी में धन्यवाद ज्ञापन करना नहीं भूलता।
और आज सत्ता गंवाने के बाद स्पष्ट घोषणा की जाती है कि हमने भारत के विरोध और आपके अनुरोध का अक्षरशः पालन करके आपकी मनसा के अनुरूप कार्य किया। जैसे हजारों-हजार पत्थरवाजों को रिहा करना, हुर्रियत और पाकिस्तान के साथ वार्ता करने को भारत सरकार को एक टेबल पर लाना यानी त्रिपक्षीय समझौते को आधार बनाना, आतंकियों और राष्ट्रविरोधी ताकतों के लिए घड़ियाली ही सही आँसू बहाना। क्या यह सिद्ध नहीं करता कि देश के प्रति अब भी गद्दार राजनैतिक दल और राजनेता आस्तित्व में हैं ?
देश के राजनैतिक हालात तो कुछ ऐसे ही इशारे कर रहे हैं।
विश्वपटल पर बंग्लादेश के उदय और पाकिस्तान के शर्मनाक पराजय के साथ ही पड़ोसी देश पाकिस्तान ने भरत को खंडित करने की योजना बनाई और शनै-शनै: लागू भी की जाने लगी। औऱ राजनैतिक सत्ता, सत्ता के लालच में छोटी घटना बताकर भावी खतरे से आँख मूँदकर व्यक्तिगत आर्थिक लाभ को प्राथमिकता देती रही। परिणाम स्वरूप वर्तमान कश्मीर आतंकवाद से ग्रस्त है। कश्मीरी अवाम की गति साँप छुछुन्दर जैसी हो रही है। जहाँ एक ओर पाक अधिकृत कश्मीर की बदहाली नजर आ रही है, वहीं भारतीय कश्मीर में खुलापन और भाईचारे में पलीता लगाने के काम को बखूबी अंजाम दिया जाता रहा। केशर की वादियों में बारूदों की दमघोंटू फिजाओं में जीने-मरने को मजबूर हैं कश्मीरी और राजनेता अपनी रोटियां सेंकने में।
देश की एकता और अखण्डता के लिए सत्ता से अलग होने के केंद्रीय नेतृत्व का निर्णय देर से ही सही, सराहनीय कदम माना जाएगा।
जब, भारतीय सेना घाटी में शान्ति और अमन -चैन बहाल करने में समर्थ होंगी।
केन्द्रीय नेतृत्व को उसी दिन समझ जाना चाहिए था जब पड़ोसी पाकिस्तान का शांतिपूर्ण चुनाव कराने के निमित्त धन्यवाद ज्ञापन किया गया था। और अब सत्ताच्युत होने के बाद स्पष्ट संदेशात्मक उद्घोषणा की गई कि आतंकवाद और अलगाववाद से हुए गुप्त समझौतों के आधार पर “जो काम करना था बखूबी हमने किया।” हालाँकि, शासन काल मे कई मौके राज्य नेतृत्व के साथ, अलगाववादियों को सुधरने के मौके दिए गए पर, हुआ वही – “भैस के आगे बिन बजाय औ’ भैंस रहे पगुराय” खैर, देर आये दुरुस्त आये।
वर्तमान की आवश्यकता और देशहित में अखण्डता को देखते हुए पाक अधिकृत कश्मीर का भी भारत में विलय आवश्यक है। ताकि भावी पीढ़ी कश्मीर समस्या से निजात पा सके। देखिए आगे-आगे होता है क्या ? हमे उम्मीद तो रखनी ही चाहिए वर्तमान नेतृत्व पर। साथ ही भारतीय सेना की वीरता और पराक्रमी रणबांकुरों पर। जयहिंद।
— स्नेही “श्याम”
कुछ भी दिखाई नहीं देता .बचपन से कश्मीर का राग सुनते आये हैं . पाकिस्तान कभी नहीं सुधरेगा .उन लोगों को भारत से नफरत है .बंगला देश वोह भूलते नहीं .बदले की भावना उन लोगों में कूट कूट कर भरी हुई है और इस्लाम के नाम पर वोह लोग जनत जाने को तीबर हैं . इस का एक ही इलाज है, जंग को जारी रख के अतंकवादियो को खत्म करते जाना .कोई उन से बात करने की जरूरत नहीं बस उन को मारते जाओ !!!!!!!!!!!!!!!
पूरी तरह सहमत हूँ ! यही करना होगा.