दबे हर दर्द को ऐसे बढ़ाया जा रहा है
दबे हर दर्द को ऐसे बढ़ाया जा रहा है
नमक हर घाव पर मलकर लगाया जा रहा है
सिंचाई हो रही है आदमी के खून से अब
धरा को प्यार की बंजर बनाया जा रहा है
नही है असलियत में दूर तक जिसका निशां भी
हमें झूठा वही मंजर दिखाया जा रहा है
लगाई आग जिसने देश में हर बार देखो
वही मनहूस मुद्दा फिर उठाया जा रहा है
नही है देश के कानून पर उनको भरोसा
शरीयत का तभी फतवा सुनाया जा रहा है
सियासत कर रही है खेल कैसा देखिये तो
लगाकर आग फिर पानी मँगाया जा रहा है
वही होगा सियासत में हुआ है आजतक जो
लड़ाने का हमें मौसम बनाया जा रहा है
सतीश बंसल
१०.०७.२०१८