गीतिका/ग़ज़ल

दबे हर दर्द को ऐसे बढ़ाया जा रहा है

दबे हर दर्द को ऐसे बढ़ाया जा रहा है
नमक हर घाव पर मलकर लगाया जा रहा है

सिंचाई हो रही है आदमी के खून से अब
धरा को प्यार की बंजर बनाया जा रहा है

नही है असलियत में दूर तक जिसका निशां भी
हमें झूठा वही मंजर दिखाया जा रहा है

लगाई आग जिसने देश में हर बार देखो
वही मनहूस मुद्दा फिर उठाया जा रहा है

नही है देश के कानून पर उनको भरोसा
शरीयत का तभी फतवा सुनाया जा रहा है

सियासत कर रही है खेल कैसा देखिये तो
लगाकर आग फिर पानी मँगाया जा रहा है

वही होगा सियासत में हुआ है आजतक जो
लड़ाने का हमें मौसम बनाया जा रहा है

सतीश बंसल
१०.०७.२०१८

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.