“मुक्तक”
तर्क तौलते हैं सभी, लिए तराजू हाथ।
उचित नीति कहती सदा, मिलों गले प्रिय साथ।
माँ शारद कहती नहीं, रख जिह्वा पर झूठ-
ज्ञान-ध्यान गुरुदेव चित, अर्चन दीनानाथ॥-1
प्रथम न्याय सम्मान घर, दूजा सकल समाज।
तीजा अपने आप का, चौथा हर्षित आज।
धन-निर्धन सूरज धरा, हो सबका बहुमान-
गाय, भाय, बेटी-बहन, माँ- ममता अधिराज॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी