लघुकथा – झरते आँसू
आज पन्द्रह अगस्त है । शहर के खेल मैदान में पूरा शहर ‘स्वतंत्रता-दिवस’ मनाने जा रहा है । सुबह का समय माननीय मंत्री जी अपने परिवार के साथ झण्डा-रोहण हेतू लग्जरी कार में मैदान की तरफ आ रहे हैं । उनके छोटे बच्चे के हाथ से अचानक प्लास्टिक का तिरंगा झण्डा चलती कार से गिर जाता है ।
उस तिरंगे को मैदान के पास की झोपड़ पट्टी का एक बालक उठाकर जैसे उसे अलादीन का च़िराग मिल गया हो, प्रसन्न मन वह भागता भागता अपनी झोपड़ी में जाकर अपने बापू को बताता है और कहता है- बापू बापू ये झंड़ा कैसा है ? ये एक कार से गिर गया था , मैं इसे उठा लाया ।
झंडे को देखकर, उस बूढ़े, अपाहिज भिखारी की आँखें नम हो गई । वो कहने लगा, बेटा ! ये भारत का झंडा है ।
” ये भारत क्या है ? बालक ने पूछा ।
बापू बोला – ‘भारत अपना देश है ।’ आज भारत की स्वतंत्रता की वर्षगाँठ है ।
लड़का फिर बोला – बापू , क्या भारत हमारा भी देश है ? बालक प्रश्न पर प्रश्न करता रहा और उस बूढ़े भिखारी की आँखों में आँसू झरते रहे …
— विश्वम्भर पाण्डेय ‘व्यग्र’