किसान
ब्रह्ममुहूर्त में,
सजग प्रहरी की तरह,
उठा अपने शस्त्र,
खेतों में…
सोना उपजाए ।
भूलके अपनी,
पीड़ और छाले,
झोंके जीवन को,
खेतों की हवनशाला में…
अन्न उगाए ।
त्रासदी ऐसी कि
“अन्नदाता” ही
भूखमरी की भेंट चढ़ जाए ।
कर्ज की गठरी
जब हो जाए भारी
असमय मौत को गले लगाए,
खेतों में ही होम हो जाए ।।
अंजु गुप्ता