कहानी

बेटी की चाहत

बेटी की चाहत

[‘मुझे सब छोड़ देंगे’के पहले की कहानी]

काफी देर हो गई। मुझें अब चिंता हो रही है। मैंने एक बार फिर बालकनी में कदम रखा और नीचे देखा। गेट के पास पड़े बुरी तरह भीगे हुए एक कुत्ते के अलावा वहां कहीं भी कोई भी नहीं था। लैम्प पोस्ट के नीचे बारिश का पानी इकठ्ठा हो गया था। चौहद्दी में लगे आम के पेड़ को एक हवा ने झकझोरा और कुछ टहनियां गिर कर टूट गईं। दूर कहीं बिजली गरजी। मुझे दरवाजे पर हल्की दस्तक सुनाई दी? मगर मैंने मुड़कर देखा तो हवा उस लकड़ी के फ्रेम को दीवार से थपथापा रही थी जिसमें एक एक्रिलिक पेंटिंग बनी थी।
दर्द कम ही नहीं होता और आकाश कहीं दिखाई नहीं दे रहे। वे अमिताभ बच्चन का इंटर्व्यू लेने में फंसे हुए होंगे। लेकिन वह तो दो घंटे पहले खत्म हो जाना चाहिए था। हम्म … हो सकता है उसके बाद रखी गई हाई-टी की वजह से रुके हों। क्या मुझे फोन करके देखना चाहिए? क्या वह गाड़ी चला रहे होंगे?
मैंने अपने गुम्बद बने पेट को देखा और जैसे उसके अंदर से किसी ने कहा, “क्या तुम डर रही हो मम्मा?” मैंने उससे कहा या शायद खुद से – “नहीं बेटी। आपकी मम्मा बहुत मजबूत है। याद रखाना।”
उत्तर में सिर्फ एक और टीस उठी जैसे मेरी शक्ति की परीक्षा लेने के लिए और मैंने तत्काल फैसला लिया कि अब और इंतजार नहीं। मैंने की होल्डर से कार की चाबी ली और आकाश को एक एसएमएस कर दिया।
मैंने पेट को स्टीयरिंग व्हील से और कार को फिसलन वाली गीली सड़कों से बचाते हुए नर्सिंग होम का रास्ता नापा। मगर लगता है एक और बम्पर आया तो मेरी कार में ही डिलिवरी हो जाएगी। लेकिन अजीब बात है। यह क्या हो रहा है? डॉ प्रतिभा की दी गई तारीख में अभी भी 15 दिन बाकी हैं। ओह! मैंने उन्हें फोन नहीं किया। वैसे भी, मैं जल्द ही वहां पहुंच जाऊंगी।
इस हलचल के दौरान ऑपरेशन थिएटर में लेटे हुए भी मुझे जाने क्यूँ यकीन सा था कि मुझे लड़की ही होगी। इतना ज़्यादा यक़ीन कि उसके लिए कभी भगवान से प्रार्थना तक नहीं की। मेरी गर्भावस्था के बाद से, मैं उसे ‘बेटी’ कहा करती थी। कई घंटों तक दर्द के दौरे से चलते रहे और फिर एक पल में मैंने दम लगाया और वह इस दुनिया में बाहर आ गई जबकि मैं इस दुनिया से गाफिल हो गई।
जब मैंने आँखें खोली तो सफेद कपड़े में लिपटी अपनी लड़की के साथ एक मुस्कुराती हुए नर्स को देखा। उसने मेरे कानों में फुसफुसाते हुए कहा “मुबारक हो!! आपको एक प्यारा सा स्वस्थ लड़का हुआ है। देखो वह कितना सुंदर है। एकदम सफेद रसगुल्ले जैसा।”
मुझे एकदम से धक्का लगा और मैं खीझ से भर उठी। उसके बारे में इतना सुंदर क्या है? किसी गाय या शेर-चीते का बछड़ा भी इतना ही सुंदर होगा। मैंने दुगने हुए दर्द से अपना सिर घुमा लिया। नर्स उसे आकाश के पास ले गई। तब मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने ही बच्चे के प्रति ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। यह कोई तरीका नहीं है। मैं मज़बूत होने की बजाय नफरत से भर रही हूँ। इससे मेरा दर्द और बढ़ेगा। कम तो हरगिज़ नहीं होगा।
मेरी आँखों के सामने वे सभी बदसूरत क्षण घूम गए जो मैंने एक लड़की के रूप में … एक औरत के रूप में झेले हैं।
…वे क्षण जब मेरे भाई का जन्म हुआ और मुझे अपने संयुक्त परिवार द्वारा भुला दिया गया … वे क्षण जब स्कूल के एक लड़के ने मुझे पीटा था और उस लड़के को कुछ कहने की बजाय मुझे ही लड़कों से दूर रहने की हिदायत दी गई…
… .. वे घिनौने पल जब मेरे गणित के टीचर ने अपना हाथ मेरी गर्दन से होते हुए मेरी स्कर्ट में सरका दिया….. वे पल जब मैं अपनी कॉलेज की गहरी दोस्त को एसिड के हमले से जलते हुए बेबस देखती रही और कुछ मदद नहीं कर सकी …… वे क्षण जब “फार्वर्ड” होने के लिए लड़कवालों की तरफ से रिश्ता ठुकरा दिया जाता था ….. वे पल जब मैं अपने माता-पिता के लिए बोझ हो गई, इतनी भारी बोझ जितना कि दहेज …
…. वे पल जब मैं अपने रेडियो स्टेशन मैनेजर की अनचाही हरकतों का पर्दाफाश नहीं कर सकी … और जब कर सकी तो एक आदमी की मदद से जो मेरा नया सहकर्मी था, आकाश….. जो कि खुद एक मर्द था…….उन जघन्य पलों के बारे में क्या कहूँ जब आज भी पुलिस की पहुँच से फरार उन पांच अज्ञात आदमियों ने मेरे शरीर के प्रत्येक हिस्से को अपने सोफे की कुशन की तरह इस्तेमाल किया …
…..उन क्षणों की मिली पीड़ा कैसे भुला सकती हूँ जब आकाश ने मुझ से शादी की, मैं लगातार उसकी आँखों में अपने लिए दया-करूणा महसूस करती आई हूँ……उफ ….उफ ..उफ….. और मैं कैसे भूल सकती हूँ कि मेरी गर्भावस्था ने मुझ से वह सुनहरा मौका छीन लिया जब हमारे रेडियो स्टेशन पर गर्ल चाइल्ड का अभियान शुरु हुआ और उसे चलाने का मौका आकाश को दे दिया । यह एक अभियान था, जो मेरे दिल की गहराई से जुड़ा था और यह कैम्पेन गर्ल चाइल्ड के लिए संयुक्त राष्ट्र के राजदूत के साक्षात्कार के साथ समाप्त होने वाला था, हां महान अमिताभ बच्चन के साथ, मेरे बचपन के हीरो और हमेशा से मेरे लिए प्रेरणा रहे बदाशाह के साथ।
इस उफनते दर्द से निकलने के लिए मैंने अपनी आँखें खोली। छतों पर लगी फाल्स सीलिंग की मैट्रिक्स में बनाई रोशनी मेरी आँखों में चुभ गई।मेरे बिस्तर की दाहिने तरफ आकाश था, बच्चे को प्यार करता हुआ, पुचकारता हुआ। मेरी आंखें उस बच्चे को स्कैन कर रही थीं जिसकी अभी तक ठीक से आँखें भी नहीं खुली थीं, मैं उसके चेहरे में उन पाँचों का चेहरा खोज रही थी जिन्हें फाँसी की सज़ा दी जानी चाहिए।
अरूण को अपनी बाहों में भरे आकाश के चेहरे पर जाने कहाँ की मासूमियत और ममत्व झलक रहा था। हाँ अरुण, अगर मेरे सपनों की प्यारी अरुणा नहीं तो अरुण ही सही। मेरा मन इतना जटिल क्यों हैं? मैं आकाश की तरह क्यों नहीं हो सकती? मैं उस रात उसका जवाब नहीं भूल सकती।
उस रात गले में बाहें डाले-डाले मैंने अपने दिमाग में एक निश्चित उत्तर के साथ सीधा-सपाट सवाल पूछा था।
“आपको क्या चाहिए, एक लड़की या लड़का?”

वे मुस्कुराए और मैंने उनकी मुस्कुराहट को समझा था ‘एक लड़की, तुम्हारे जितनी सुंदर और सशक्त’। मगर नहीं उन्होंने तो कहा “क्या इसमें भी कोई विकल्प होता है? हमारी मर्जी चलती है क्या? नहीं न? फिर ऐसी कल्पना ही क्यों जाए या ऐसी इच्छा रखने का क्या मतलब जो अपने हाथ में बिल्कुल है ही नहीं।”
आह! कितना स्पष्ट उत्तर था ? मैं उनके जैसी क्यों नहीं हो सकती? क्यों, मैं दुनिया को साबित करने पर तुली हूँ कि लड़कियाँ बोझ नहीं होती? उफ…उफ…उफ।

*****
काफी देर हो गई। मुझे अब चिंता हो रही है। मैंने एक बार फिर बालकनी में कदम रखा और नीचे देखा। लैम्प पोस्ट के नीचे बारिश का पानी इकठ्ठा हो गया था। चौहद्दी में लगे आम के पेड़ को एक हवा ने झकझोरा और कुछ टहनियां गिर कर टूट गईं। दूर कहीं बिजली गरजी। मुझे दरवाजे पर हल्की दस्तक सुनाई दी? मैंने पीछे मुड़ते हुए सोचा कि क्यों हर बरसात का मंजर एक सा निर्जन दिखता है।
इससे पहले कि मैं दरवाजे तक पहुंच सकूं, उसने अपने टेडी को एक ओर फेंक दिया और घुटने के बल दरवाजे की ओर ऐसे दौड़ा जैसे दरवाज़ा खोलने के लिए वह मुझसे ज्यादा उत्सुक है। उसने दरवाज़े पर अपने चांदी के उस कड़े से ठकठकाना शुरु कर दिया जो हमारे नए रेडियो स्टेशन प्रबंधक ने भेंट दी थी….ओह नहीं….हमारे नहीं ….आकाश के रेडियो स्टेशन मैनेजर। मैं अब काम नहीं करती।
उसे अपनी बाहों में ले कर मैंने एक नई आशा और नए उत्साह के साथ दरवाजा खोला। आकाश मेरी सोनोग्राफी रिपोर्ट लेकर खड़े थे। मुझ यह जानने के लिए उन रिपोर्टों की ज़रूरत नहीं कि मैं फिर से माँ बनी हूँ। वे सिर्फ पुष्टि मात्र हैं।
लेकिन जिस अदा से आकाश घर में दाखिल हुए, मुझे घबराहट हुई। उनका चेहरा झुका हुआ और बेजान सा था। आंखें लगभग गीली। उनका चेहरा मेरी तरह नहीं है जो दुनिया का सारा तूफान अपने में छुपा सकता है। उनका चेहरा उनके दिमाग का आइना है।
ओह! कहीं ये मेरे साथ झूठ-मूठ की कोई शरारत तो नहीं कर रहे हैं।
वे सोफे में ऐसे गिरे जैसे किसी दलदल में और मुझे रिपोर्ट सौंपने के लिए अपना हाथ बढ़ाया। मैंने उस रंगीन कवर को डरते हुए देखा और अरुण को एक हाथ में थामें हुए रिपोर्ट लेने के लिए दूसरा हाथ बढ़ाया। मगर मेरे हाथों ने उसे लेने से इंकार कर दिया और मैंने उनसे ही पूछ लिया “इसमें क्या है? क्या कहती है रिपोर्ट?”
झुके हुए सिर के साथ दाईं ओर की साइड टेबल लैंप को देखते हुए लगभग एक मृत व्यक्ति की आवाज़ में वे बोले – “इट्स ट्यूबल … एक्टोपिक। इसे टर्मिनेट करना पड़ेगा।”
मैं एक बार फिर बिखर गई। लेकिन मैं अपने हाथों में अरुण को पकड़ कर दृढ़ता से खड़ी थी जबकि वह मेरी बालियाँ अपने मुंह में डालने की कोशिश कर रहा था। आकाश ने मुझ से अरुण को ले लिया और मैंने रिपोर्ट को।
मैंने चमकीले-चिकने कवर से रिपोर्टों को बाहर निकाला, मन अभी भी कह रहा था कि यह एक शरारत हो। मेरी आंखों ने रिपोर्ट की चिकित्सा शब्दावली पर नज़र दौड़ाई मगर भाग्य ने एक बार फिर मेरे साथ शरारत की थी। उफ…उफ…उफ।
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मैं फिर बालकनी में खड़ी थी, मुझे दरवाजे पर हल्की दस्तक सुनाई? मैंने वापस लौट कर पाया कि पार्ले जी बिस्कुट के रैपर पर बने बच्चे की तरह मेरी ज़िंदगी में कुछ नहीं बदला था। आकाश फिर मेरी सोनोग्राफी रिपोर्ट के साथ दरवाजे पर थे।
इस बार वह दो साल पहले की तरह उदास या चुप नहीं थे। वे झुके हुए बेजान चेहरे के साथ दाखिल नहीं हुए। बल्कि एक आंधी की तरह आए, एक बिजली की तरह जो अभी भी कहीं दूर सुनाई दे रही थी। और आते ही ड्राइंग रूम में ज्वालामुखी की तरह फट पड़े।
“क्यों … तुम यह क्यों कर रही हो अपने साथ? अपने शरीर की कीमत पर एक बच्ची क्यों चाहती हो? जानती हो इस बार तुम्हारी ट्यूब हटानी पड़ेगी। तुम क्यों नहीं समझती कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ? तुम्हें दर्द में देखकर दर्द होता है। तुम क्यों नहीं समझती कि अरुण को और मुझे तुम्हारी कितनी जरूरत है? डैम इट !!! ”
मैंने अपनी बाहों में तीन साल के अरुण को कस कर पकड़ा हुआ था और अपनी सारी ताकत समेटने के बावजूद मैं अपने दर्द को गालों पर बहने से रोक नहीं पाई। अरुण ने इसे सबसे पहले देखा और अपने नन्हें हाथों से पोंछते हुए और मेरी पीड़ा को बढ़ाते हुए कहा “मत रोओ मम्मा? मेरे जैसे स्ट्रॉन्ग बॉय बनो।”
उफ़ … उफ़ … उफ़।
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हर मानसून के समय आश्चर्यजनक रूप से शॉर्ट सर्किट होता है और मेरे दरवाजे की घंटी स्वाहा हो जाती है। तो मैंने इसे बनवाना ही छोड़ दिया है। मुझे दरवाजे पर हल्की दस्तक सुनाई दी इसलिए मैं दरवाज़े की तरफ चल दी।
दरवाजा खोला तो मैंने श्रीमती मेहरोत्रा के साथ अरुण को पाया। मेरी आँखें आश्चर्य से फटी रह गईं क्योंकि अरुण गुलाबी फूलों वाली फ्रिल की फ्रॉक और लड़कियों वाले पार्टी मेक-अप में तैयार खड़ा था।
श्रीमती मेहरोत्रा ढेरों माफ़ी माँगती हुई दाखिल हुईं।
“मैं कुछ नहीं कर सकी। यह रिया की फ्रॉक पहनने के लिए ऐसे अड़ा हुआ था कि मेरे बस में कुछ नहीं था… और अब दो घंटों से मैं उसे यह फ्रॉक और मेकअप उतारने के लिए कह रही हूँ लेकिन देखिए ना…”
मैंने अरुण को देखा। वह परमानंदित था और मुझ पर मुस्कुराहटों की बौछार कर रहा था। जैसे मुझसे इस हरकत के लिए शाबाशी पाना चाहता हो।
“यह क्या है बेटा? अगर आपके दोस्त आपको इस तरह देखेंगे तो आपका मजाक बनाएंगे।”
उसने बहुत गर्व से कहा “मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।”
इस बार मैं गुस्से से बिफर गई।
“चुप रहो और इस फ्रॉक को तुरंत आंटी को दो।”
अरुण डर गया। किसी तरह से अपने आँसूओं को थामे वह बेडरूम में गया।
“प्लीज बच्चे को मजबूर मत करो। मैं फ्रॉक लेने के लिए फिर कभी आ जाऊँगी। वैसे यह रिया की पसंदीदा फ्रॉक है। ”
“ओह! मुझे बहुत खेद है श्रीमती मेहरोत्रा। मैं अभी लाकर आपको देती हूँ।”
इससे पहले कि मैं बेडरूम की ओर जाती अरुण फ्रॉक के साथ वापस आ गया।
रात में मैंने अरुण के बिस्तर पर झाँककर देखा तो पाया कि वह सोया नहीं था। उसके ऊपर झुककर मैंने उसके बालों में शरारत सी की।
मैंने भगवान से प्रार्थना की थी और फलस्वरूप मैंने चार बार गर्भ धारण किया, मगर मेरे फलोपियन ट्यूबों की कीमत पर। सिर्फ इसलिए कि मैं अपनी संतान को फ्रॉक में देख सकूँ, मगर इस तरह से नहीं। आखिर अरुण को हुआ क्या है? वह ऐसी हरकतें क्यों कर रहा है? एक दिन मैंने चुपके से देखा था तो पाया कि वह मेरी साड़ी पहनने और मेकअप लगाने का प्रयास कर रहा है। इस पांच साल के बच्चे के सिर में क्या गलत घुस गया है?
मैं चाहती थी कि वह अपने मन की बात मुझे बताए।
“बेटू, क्या हो गया है आपको? आपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलना क्यों बंद कर दिया? क्या आपको क्रिकेट पसंद नहीं है? ”
“मुझे यह पसंद है लेकिन …”
“क्या?”
“बस रिया और उसके दोस्तों के साथ घर-घर खेलना चाहता था।”
“वो तो ठीक है, लेकिन इसके लिए फ्रॉक पहनने की क्या ज़रूरत?”
“हम्म … वो … इसलिए … बस … क्योंकि मैं चाहता हूं ……. वो…..लड़की बनने के लिए।”
उसने मुझे वापस देखने के लिए अपनी ठोड़ी उठाई ताकि अपने जवाब की प्रतिक्रिया देख सके।
“लड़की?? तुम एक लड़की क्यों बनना चाहते हो ?? ”
मैंने उसे गुस्से से देखा। लेकिन वह सहज था और पहले से काफी आराम महसूस कर रहा था जैसे उसके दिल से भारी पत्थर हट गया हो।
“ये इसलिए मम्मा … आप एक लड़की चाहते थे और मुझे नहीं।”
यह वाक्य मुझे एक बड़े झटके की तरह लगा। वह यह कैसे जानता था? उसे किसने बताया?
“किसने कहा?”
“तुमने कहा था।”
“मैं? क्या? मैंने ऐसा कब कहा? ”
“आखिरी बार जब नानीजी आई थीं, तो आपने उनसे कहा, आप एक बच्ची चाहते थे लेकिन भगवान ने आपको एक लड़का दे दिया और आप मेरे कारण बहुत परेशान हो … क्योंकि मैं लड़का हूं, न कि लड़की।”
ओह! उसने पिछली गर्मियों में हुई हमारी बातें सुन लीं, जब माँ और पिताजी हमसे मिलने आए थे। उफ़ … उफ़ … उफ़।
यह छोटा सा लड़का एक लड़की बनने के इस बकवास विचार से भरा हुआ है। क्या करें? मैं इस समस्या को ठीक कैसे करूं? आकाश तुम कहाँ हो? मुझे आकाश की ज़रूरत महसूस हो रही है, जो इस क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में गणपति उत्सव के लाइव कवरेज के लिए बाहर गए हैं।
अरुण की आँखों में अजीब सा अकेलापन है। वह असुरक्षा की भावना से जूझ रहा है। वह उदासीनता की इस भावना से डूब रहा है और उसकी आंखें मुझसे मदद मांग रही हैं। हे भगवान! एक लड़की के लिए मेरे जुनून ने मेरे बच्चे को यह क्या कर दिया है?
मैंने उसका सिर अपने सीने से लगाकर कुछ देर सहलाया। इससे मुझे अंदर ही अंदर एक ताकत का एहसास हुआ और मुझे यह भी अहसास हुआ कि मैं इस मानसिक भवंर से बाहर निकल सकती हूँ, अपनेआप, बिना किसी की मदद लिए। पर तभी जैसे मेरी शक्ति का परीक्षण लेने के लिए अरुण मुझसे अलग हुआ और पूछ बैठा।
“क्या मैं कभी एक लड़की बन पाऊंगा, मम्मा?”
मैंने उसे बाहों में कसकर कहा “हाँ, बेटू।”
मैंने उसे छोड़ दिया और वह कूद कर मेरे सामने बिस्तर पर बैठ गया।
“सच में। कैसे? ये कैसे हो सकता है?”
मैंने अपने दोनों हाथों में उसका गोल-मटोल चेहरा लिया और उसके जीवन की एक बड़ी सीख उस दिन उसे दी।
“तुम ज़रूर मेरी बेटी बन सकते हो, मगर फ्रॉक पहनकर या लड़कियों की नकल करके नहीं, बल्कि …।”
उसके चेहरे से चमक अचानक गायब हो गई और मेरे विस्मित से पांच साल के बेटे ने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया।
“लेकिन … कैसे … मम्मा कैसे? मुझे बताओ न?”
मैंने अपनी भौहें उठाईं और मेरा सिर ऊंचा रखा।
“… लड़कियों का सम्मान करके। उन्हें अपने बराबर समझकर। उन्हें कमज़ोर नहीं समझकर। अपने आप को कभी उनसे ऊँचा नहीं समझना। किसी काम को लड़कियों या लड़कों के काम के रूप में मत देखना। सब काम आप दोनों के लिए हैं, क्या हुआ अगर भगवान ने आप दोनों के शरीर में थोड़ा अंतर बनाया है।”
उसकी आँखें चमक गईं।
“जैसे आप और डैडू।”
“हाँ।”
“और मैं क्रिकेट भी खेल सकता हूं ..”
“हाँ”
“.. और रिया के गुड़िया का खेल भी।”
“हाँ बेटा … दोनों कर सकते हो … आप सही समझे हो।”
उसने मुझे गले लगा लिया और मुझे कसकर गले लगा लिया।
“अब तो आप एक लड़की के लिए उदास नहीं होवोगे न।”
मेरे पास कहने के लिए कोई शब्द नहीं था। बस उफ्‌ उफ्‌ उफ्‌।
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*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल n30061984@gmail.com