मुक्तक/दोहा

“मुक्तक”

फिंगरटच ने कर दिया, दिन जीवन आसान।

मोबाइल के स्क्रीन पर, दिखता सकल जहान।

बिना रुकावट मान लो, खुल जाते हैं द्वार-

चाहा अनचाहा सुलभ, लिखो नाम अंजान॥-1

बिकता है सब कुछ यहाँ, पर न मिले ईमान।

हीरा पन्ना अरु कनक, खूब बिके इंसान।

बिन बाधा बाजार में, बे-शर्ती उपहार-

हरि प्रणाम मुस्कान सुख, सबसे बिन पहचान॥-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ