जीवन जैसे – दृष्टिपटल
मिट जाएंगे प्रतिबिम्ब, है निश्चित !
आज, अभी या कल ।
कितनी शलकायें, किसको सुध!
जीवन जैसे – दृष्टिपटल ।।
उलझन,पीड़ाएं, संघर्ष,विपदाएं ।
ये शब्द किसने गढ़े !
जीवन चरित्र -अलंकृत पन्ने।
अंतर्मन में बिखरे पड़े ।।
धीरे- धीरे , मन की पीरें !
गीत बनने को हैं विकल ।
कितनी शलकायें, किसको सुध !
जीवन जैसे – दृष्टिपटल ।।
वक्त गुजरा ! गिरकर सम्हले ।
कहानियां वही ! किरदार बदले ।।
बचपन, यौवन और बुढापा ।
कब आये, कब गए निकल।।
कितनी शलकायें! किसको सुध।
जीवन जैसे – दृष्टिपटल ।।
बेहतर कल की चाह में
आज को खोता रहा ।
जो मिला उसे भूल कर
नही के लिए रोता रहा ।।
काल का पहिया कभी न थमता ।
है सर्व विदित,ये मृत्यु अटल ।।
कितनी शलकायें ! किसको सुध!
जीवन जैसे – दृष्टिपटल ।।
— नीरज सचान