कविता

जय किसान

क्षितिज पर जब हो रही होती पैदाइश नए आदित्य की ..
तड़के ही, कॉधे पर रख हल खेत की ओर चल पड़ता….
मन मेअसीम संभावनाओ को भर
 ..हल चलाता  महनत  से …
पसीना बहाता ,संग होता पूरा परिवार ..
सोना उगले माटी ,बना देता इस काबिल …
फिर बीज बोता ..कभी जल से सिचता ,कभी डालता खाद …
पोषण करता अपनी महनत से  …
कभी गगन से बरसते जल मे वस्त्र भिगते ….
कभी गर्म लू मे जलता  बदन ..।
हार नही मानता …
सन्तान सम करता देख-रेख फसल की…
ज्यो ज्यो बढती फसल देख ….
हिलोरे मारता उसका मन ..
प्राणो मे भरता जीवन रस…
प्रसन्न हो उसको सहलाता..
हरी भरी ..शीतल, सुहावन,
मनभावन हो जाती  धरती ….
महकती   पकी फसलो से ..।
कर्म नियत, फसल पक जाने पर !
करता उस को बिकने को तैयार .
सहुकारो से मिलते बहुत कम दाम…
हो जाता उसका जीवन बेहाल ..
नही मिलता उसको महनत का सही मोल ..
नमन है माटी पुत्र को ,मिटटी मे सोना उपजाता ,
सब का भरता पेट ,रूखा -सुखा ही खा ,
अपने आप सो जाता खाली पेट ..।
बबीता कंसल

बबीता कंसल

पति -पंकज कंसल निवास स्थान- दिल्ली जन्म स्थान -मुजफ्फर नगर शिक्षा -एम ए-इकनोमिकस एम ए-इतिहास ।(मु०नगर ) प्राथमिक-शिक्षा जानसठ (मु०नगर) प्रकाशित रचनाए -भोपाल लोकजंग मे ,वर्तमान अंकुर मे ,हिन्दी मैट्रो मे ,पत्रिका स्पंन्दन मे और ईपुस्तको मे प्रकाशित ।