गीतिका/ग़ज़ल

दूजों को कब हम रोते हैं

ग़ज़ल

दूजों को कब हम रोते हैं।
अपने अपने गम होते हैं।।

साथ मेरे होता नही वो तो,
दर्द भरे मौसम होते हैं।

खुश्क नज़र को आंक रहे हो,
भीतर भी सावन होते हैं।

चटक रंग या रेशमी देखो,
भीगे सब दामन होते हैं।

शोर शराबा अब यही बाकि,
जब घर में मातम होते हैं।

रंज नही बस हँसी ख़ुशी हो,
ऐसे किस्से कम होते हैं।

भीतर अब हर चीज़ खोखली,
बाहर रंग रोगन होते हैं।

दुनिया को जो लफ्ज़ तीर हैं,
मुझको ‘लहर’ मरहम होते हैं।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा