आमेर के किले का संक्षिप्त इतिहास
आमेर किले की स्थापना मूल रूप से सन् 967 ईस्वी में राजस्थान के मीणाओं में चन्दा वंश के राजा एलान सिंह द्वारा की गयी थी। वर्तमान आमेर दुर्ग जो दिखाई देता है वह आमेर के कछवाहा राजा मानसिंह के शासन में पुराने किले के अवशेषों पर बनाया गया है। मानसिंह के बनवाये महल का अच्छा विस्तार उनके वंशज जय सिंह प्रथम द्वारा किया गया । अगले 150 वर्षों में कछवाहा राजपूत राजाओं द्वारा आमेर दुर्ग में बहुत से सुधार एवं प्रसार किये गए और अन्ततः सवाई जय सिंह द्वितीय के शासनकाल में 1727 में इन्होंने अपनी राजधानी नवरचित जयपुर नगर में स्थानांतरित कर दिया ,जो वर्तमान में राजस्थान की राजधानी है ।
इसी दुर्ग को देखने मैं सपरिवार 30-9-18 को गया था ,यह दुर्ग जयपुर से 11 किलोमीटर दूर घने वनों से आच्छादित जंगलों से ढकी ऊँची पहाड़ियों पर ऊंची प्राचीर से घिरे परकोटे के बीच बहुत ही भव्य , कलात्मक , अस्त्र ,शस्त्रों , कलात्मक धरोहरों ,कलादीर्घाओं , शयनकक्ष , आरामगाह ,आमोद-प्रमोद स्थलों आदि-आदि से सज्जित अत्यन्त सुरक्षित महल है । इसी से और ऊँचाई वाली पहाड़ी पर ‘ जयगढ़ दुर्ग ‘ है ,जहाँ दुनिया की सबसे बड़ी तोप ‘जयबाण’ ,जिसे वहीं स्थित कारखाने में स्थानीय कुशल कारीगरों ( वैज्ञानिकों ) ने इसे सन् 1720 में बनाई गई थी ।
यह किला चूँकि काफी ऊँचाई पर स्थित है इसलिए वहाँ हाथी पर सवारी करके भी जाया जाता है ,वैसे हम लोग अपनी बड़ी गाड़ी से ही वहाँ गये थे , उन्हीं सजीधजी हाथियों का यह विडिओ है ।
— निर्मल कुमार शर्मा