लघुकथा

आँखें

रौशनी पंद्रा सोला वर्षय एक खूबसूरत लड़की तो थी ही, मगर इस से भी ज़्यादा फुर्तीली काम काज में माहिर और गाने में सुरीली आवाज़ की मालिक थी। हर सुबह वोह माँ के साथ बाबा नानक जी की फोटो के सामने खड़ी हो कर अरदास में शामिल होती, फिर वोह बगीचे में जा कर फूलों को पानी देती, उन को सूँघ कर उन से बातें करती जैसे वोह फूल उन की बात समझ रहे हों। फिर वोह चिड़िओ को दाने फेंकती जो शायद पहले ही उस की इंतज़ार में बैठी हों। और आखिर में जाती अपनी सखी गाय के पास, जिस का नाम उस ने गौरी रखा हुआ था। उस को आटे का पेड़ा खिलाती, उस के सींगों को हाथ से सहलाती। घर के सब काम बहुत अच्छे ढंग से करती। सही मानों में वोह घर की रौशनी ही तो थी।

बस एक ही बात थी, कुदरत ने उस के साथ इन्साफ नहीं किया था, वोह नेतरहीन थी। लेकिन रौशनी को इस की कोई परवाह नहीं थी, भले ही उस की माँ अंदर से दुखी हो। जब वोह दो महीने की थी तो चारपाई से गिर गई थी और बहुत देर बाद माँ को पता चला था कि रौशनी तो देख नहीं सकती थी. उस की खूबसरती को देख कर ही माँ ने उस का नाम रौशनी रखा था। बहुत इलाज कराया गिया था लेकिन रौशनी की आँखों में रौशनी की बजाए अँधेरा ही रह गया।

बड़े भइया की शादी थी और रौशनी अपनी सहेली पुष्पा के साथ बैठी प्याज़ काट रही थी। पिआज़ों का टोकरा उन के पास था। वोह काट रही थीं और साथ साथ गा भी रही थीं। प्याज़ बहुत कड़वे थे और दोनों की आँखों से पानी बह रहा था और इस पर वोह हंस रही थीं। आधा टोकरा खत्म हो गया था, तभी रौशनी को कुछ अजीब सा महसूस हुआ, कुछ धुन्दला सा दिखाई देने लगा। वोह पुष्पा की तरफ देखने लगी और कुछ ही मिनटों में उसे साफ़ दिखाई देने लगा।

उस ने कमरे के चारों ओर देखा, छत पर घूमता हुआ पंखा देखा, वोह उठ कर बाहिर की ओर भागी। पुष्पा चिल्लाई,” रौशनी किया कर रही हो, धीरे चल, गिर जायेगी “. बाहिर निकल कर रौशनी ने आसमान की तरफ देखा, इर्द गिर्द के मकानों की ओर देखा। फिर वोह बगीचे की तरफ चले गई, एक एक फूल को धियान से देखने और उन से बातें करने लगी,” ओह ! तो तुम ऐसे हो, तू कौन सा रंग है, अरे तू कितना खूबसूरत रंग है, तेरा किया रंग है ?” बातें करती करती भूल ही गई कि उस ने तो प्याज़ काटने थे। आँगन के पेड़ पर बैठी चिड़िओं की ओर देखने लगी। उन की आवाज़ से ही उस को पता चल गिया कि जिन को इतने वर्षों से दाने डालती आई थी, वोह ऐसी थी। रौशनी चिड़िओं को ध्यान से देखने लगी और उन से बातें करने लगी।

अब उस को याद आया अपनी सखी गौरी का। गाय की तरफ गई और उस को देखती ही रही। गौरी ने रौशनी की तरफ देखा जैसे उस को पता चल गिया हो कि रौशनी अब उसे देख सकती है। रौशनी गौरी के गले लिपट गई, उस के मुंह पर अपने हाथ चलाने लगी। अचानक माँ आ गई और और बोली, ” अरे रौशनी तू यहां किया कर रही है, पुष्पा अकेले ही प्याज़ काट रही है, जाह जा कर उस का हाथ बंटा “.

रौशनी ने माँ की तरफ देखा, और फिर माँ के मुंह को अपने हाथों से सहलाने लगी। ” यह किया कर रही हो रौशनी ?”. माँ ने डांटा। रौशनी ने माँ के कपड़ों पर छपे फूलों की और देखा और एक दम माँ के गले लिपट गई और ऊंची ऊंची रोने लगी। रौशनी के पिता भइया और पुष्पा भी आ गए थे। रौशनी रोये जा रही थी और बोले जा रही थी,” ओह माँ, मुझे दिखाई देने लगा है, ओह माँ, आँखें ऐसी होती हैं ? यह तो मुझे आज पता चला, मैं तो अँधेरे में ही जीती रही, ओह माँ, स्वर्ग यहां ही है, और कहीं नहीं। माँ ! मेरे मरने के बाद मेरी आँखें दान कर दो ताकि किसी को रौशनी मिल जाए। “.

“मरें तेरे दुश्मन,” अब माँ भी हैरान हुई बोलने लगी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जो रौशनी बोल रही थी वोह सच्च था। रौशनी भीतर जा कर बाबा नानक देव जी की तस्वीर के सामने जा खड़ी हुई और हाथ जोड़ कर बाबा जी का धन्यवाद करने लगी। रौशनी के पीछे सभी लोग हाथ जोड़ कर खड़े थे।