लघुकथा

और रावण चुप हो गया

अधर्म व धर्म की विजय की प्रतीक विजयदशमी पर देश भर में रावण दहन होता है. इस साल विजयदशमी को लेकर कुछ असमंजस होने के कारण कहीं वीरवार व कहीं शुक्रवार को रावण दहन हुआ.
यह असमंजस केवल देश या आम जनता के ही मन में नहीं है, खुद रावण के मन में भी है. रावण का असमंजस! 
”मैं तो दशानन हूं. मेरे दस मुखों से कब कौन-सा मुख कौन-सी बात कह दे, मुझे पता नहीं चलता, पर तुम तो एक मुखी हो न! फिर तुमको तो पता ही होना चाहिए न, कि कब क्या बोलना है!” कुछ क्षण के लिए रावण मौन होकर पुनः बोला-
”मेरी बात अभी खत्म नहीं हुई है. ये जो तुम्हारा #MeToo का कैंपेन है न, इसे तुम पुरवइया का दर्द कहो या अभिजात वर्गीय कैंपेन, यह सब क्या है? मैंने तो ऐसा नहीं किया? मैं मानता हूं कि मैंने छल से सीताहरण किया था, लेकिन मैंने उसकी इच्छा जानते हुए बुरी नजर से उसे आंख उठाकर भी नहीं देखा.” रावण ने पानी का एक घूंट पिया.
”इसकी गवाही खुद सीता ने भी दी थी. वह अपना सतीत्व प्रमाणित करने के लिए अग्नि परीक्षा देने को भी प्रस्तुत हो गई थी. तुम लोग हर साल मुझे जलाकर जश्न मनाते हो, लेकिन इन #MeTooकैंपेन वालों के अपराधियों के साथ क्या सुलूक करोगे?” रावण ने एक लंबी सांस ली.

”मुझे तो जलने का अभ्यास हो गया है.” रावण ने कहना जारी रखा- ”मैं देखता हूं, कि मेरे जलने के लिए पुतले बनाने हेतु अनेक बेरोजगारों को रोजगार मिल जाता है, सो मैं अपने को सौभाग्यशाली समझता हूं और खुशी-खुशी जलने को तैयार हो जाता हूं. सारी उम्र पंडिताई निभाने के बावजूद केवल एक छल के कारण मुझे रंगबिरंगे परिधानों से सजाया जाता है और फिर जला दिया जाता है, लेकिन ये जो तुम्हारे #MeToo कैंपेन वाले हैं, इनके छल और दुष्कर्मों का तो कोई अंत ही नहीं, क्या ये भी जलने के लिए तैयार हैं?” रावण का दर्द छलक उठा था.

”मैं जानता हूं, कि मैं परिवार में एकता के अभाव के कारण मारा गया. भगवान राम का भाई उसके साथ था, और मेरा भाई मेरे खिलाफ. तुमने भी देश में एकता के अभाव के कारण मुझे 18 तारीख को भी जलाया और 19 को भी. मैं तो जल गया, अब तुम अपने देश की सुरक्षा हेतु तत्पर हो जाओ. ऐसा न हो कि एकता का अभाव देश को दग्ध ही कर बैठे. ये जो #MeToo कैंपेन इतना लंबा खिंच रहा है, इसके पीछे की एकता को आंको. एकता के अभाव में इस कैंपेन का सांस लेना मुश्किल था.

एकता के महत्त्व को आंको, 
अपने अंदर के रावण को झांको, 
मेरे दहन के असमंजस को भूलकर, 
अपने अंदर की बुराई पर अच्छाई की जीत के मोती टांको.”

और रावण चुप हो गया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “और रावण चुप हो गया

  • लीला तिवानी

    रावण-दहन और मौत का मंजर-

    अमृतसर में ट्रेन हादसे के दौरान एक ओर रावण दहन हो रहा था, दूसरी ओर देखते ही देखते पचास से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। चौड़ा फाटक पर रेल हादसे के बाद हाहाकार मच गया। एक प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक, ‘रावण दहन हो रहा था। व्यवस्थाओं पर बदहाली हावी थी। कुछ समय पहले तक जहां चारों तरफ खुशियां थीं, पटाखों का शोर था, देखते ही देखते सब मातम में बदल गया। मौत बनकर लोगों के ऊपर से ट्रेन गुजरी और एक पल में कई जिंदगियां लील गई। ‘रावण का पुतला 70-80 मीटर का था। आग लगने के बाद जब पुतला गिरा तो वहां मौजूद लोग खुद को बचाने के लिए रेलवे ट्रैक की तरफ दौड़ पड़े। उसी दौरान रेल ट्रैक से ट्रेन गुजर रही थी, लोग रेल की चपेट में आ गए।’

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