ग़ज़ल
जिंदगी ले मायने होने लगी
हर इबादत बंदगी होने लगी।
गम बढा चुप ही रहे गाते हुये
मौन से संजीदगी होने लगी|
कायदे देखे पड़े पग नापते
खुद भले शर्मिन्दगी होने लगी|
हो निभा रिश्ता भरी सी नाखुशी
जो लिहाजो पे दरिंदगी होने लगी।
अब नहीं हैं असल[ रेखा] अपना सोचते
वास्ता पा नुमादगी होने लगी|
— रेखा मोहन