कविता

“छंद वाचिक विमोहा”

छंद- वाचिक विमोहा (मापनीयुक्त मात्रिक) मापनी – 212 212 अथवा – गालगा गालगा पारंपरिक सूत्र – राजभा राजभा (अर्थात र र) विशेष : विमोहा ‘मापनीयुक्त वर्णिक छंद’ है, जिसमें वर्णों की संख्या निश्चित होती है अर्थात किसी गुरु 2 / गागा के स्थान पर दो लघु 11 /लल प्रयोग करने की छूट नहीं होती है। ऐसे छंद को ‘वर्ण वृत्त’ भी कहा जाता है।

“छंद विमोहा”

आप बीमार हैं।
दृश्य में सार है।।
पूछता कौन क्या।
कान है मौन क्या।।-1
आँख बोले नहीं।
मौन देखे नहीं।।
पाँव जाए कहाँ।
सार सूझे जहाँ।।-2
वेदना धार है।
आयना सार है।।
दाग दागी नहीं।
कष्ट बागी नहीं।।-3
देख ये बाढ़ है।
चेत आषाढ़ है।।
सार डूबे धरा।
तैरना परम्परा।।-4
रोक पाते नहीं।
सार जाते नहीं।।
मोह माया मिली।
क्रोध कैसी खिली।।-5
नूर नैना भली।
दूर नौका चली।।
घाट घावों भरा।
सार छाया परा।।-6
कौन आया गया।
क्या मिला क्या गया।।
सार साया लिए।
काग हौवा पिए।।-7
छोड़ जाना नहीं।
सार दाना नहीं।।
भूख ज़ोरों लगी।
पेट थाली सगी।।-8
दर्द ऐंठा रहा।
सर्द पैठा रहा।।
चींख आती रही।
चाह बैठी रही।।-9
खेल खेला नहीं।
गाँव मेला नहीं।।
लोग जाते वहाँ।
सार रेला जहाँ।।-10
मोल होता नहीं।
प्यार तोता नहीं।।
याद जाती कहाँ।
सार मोती जहाँ।।-11

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ