कहानी

सगाई – अंतिम भाग

दूसरे दिन सुबह तड़के ही अदिति की नींद खुल गई थी। वैसे भी रात को बहुत देर से नींद आई थी। नींद आने का नाम नहीं ले रही थी। न जाने कौन सी बात उसके मन को गुदगुदा रही थी। एक खुमारी सी छाई हुई थी आंखों में। आंख मलते- मलते बिस्तर से उठ गई। जल्दी से बाथरूम गई और नहा धोकर, तैयार होकर आईने के सामने आकर खड़ी हो गई। एक सुर्ख लाल रंग की सलवार कमीज पहन कर आईने में अपने आप को निहार रही थी। होटों पर मंद मंद मुस्कुराहट थी। आज आईने में अपने आप को निहारना उसे बहुत अच्छा लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे आज कोई नई आदिति खड़ी है आईने के सामने। और… आईना कह रही हो..” अदिति आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो! तुम्हें देख कर आज इंद्रजीत बहुत खुश हो जाएगा।”
वह मन ही मन कहने लगी..” अदिति, तुम्हें क्या हो गया? तुम अपने आप से बात कर रही हो! कहीं तुम्हें इंद्रजीत से प्यार तो नहीं हो गया?”.. और थोड़ी सी शर्मा गई वह।
अदिति और इंद्रजीत मंदिरों का दर्शन करके एक पार्क में बैठे हुए थे। दोनों खामोश थे, दोनों के मन में कुछ चल रहा था। दोनों बात करना चाहते थे, पर.. बात जैसे होठों पर आते आते रुक रही थी। पहले इंद्रजीत ने ही खामोशी तोड़ी और अदिति से पूछा…” तो आगे क्या इरादा है तुम्हारा? क्या करना है, और पढ़ाई करनी है या फिर..!”
“अरे.. नहीं.. नहीं.. अभी मुझे शादी नहीं करनी है। आगे पढ़ाई करनी है, उसके बाद कोई नौकरी करनी है। फिर शादी के लिए सोचूंगी। इतनी जल्दी नहीं है मुझे।”.. इंद्रजीत बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि अदिति बोल पड़ी।
“हा.. हा.. हा.. मैंने कब कहा शादी के लिए। मैं तो नौकरी के लिए ही कह रहा था। तुमने तो बात पूरी करने ही नहीं दी!”.. इंद्रजीत जोर से हंस पड़ा।
“ओह…तो फिर ठीक है, मैंने सोचा तुम शादी की बात करने जा रहे थे!”.. अदिति भी हंसने लग गई।
“वैसे.. तुम शादी किससे करोगी? जो एकदम से शादी की बात पर आ गई। किसी को देख रखा है क्या?”.. इंद्रजीत ने शरारत करते हुए पूछा।
अदिति झेंप गई अपनी गलती पर..” नहीं.. नहीं.. किसी को नहीं देखा! हां, एक है पर.. आपको क्यों बताऊं? मेरी शादी की बात है, तो बात मेरे मन में ही रहेगी ना!”.. आदिति भी कहां पीछे रहने वाली थी।
“ओह..कौन है वह खुशनसीब, मैं भी तो जरा सुनूं! वह तो बहुत ही भाग्यशाली होगा जिसे तुम ने पसंद किया है।”.. इंद्रजीत ने थोड़ा सा उदासी का नाटक करते हुए कहा।
“मैं क्यों बताऊं, है कोई? वैसे आपको इतनी उत्सुकता क्यों हो रही है?”.. आदिति मंद मंद मुस्कुरा रही थी।
“वह खुशनसीब तुम्हारे सामने तो नहीं बैठा है! हा. हा. हा.!”.. इंद्रजीत जोर-जोर से हंसने लग गया और अदिति को प्यार भरी नजरों से देखने लग गया।
अदिति थोड़ी शर्मा गई, अपनी नजरें झुकाते हुए उसने कहा..” हो भी सकता है।”
इंद्रजीत अदिति की बात सुनकर बहुत खुश हुआ और थोड़ा उदास भी हो गया, उसने अदिति से कहा..” अदिति, तुम दिल्ली जाकर मुझे भूल तो नहीं जाओगी। मैं कभी तुम्हें याद आऊंगा भी या नहीं, मेरा मन डर रहा है।”
अदिति भी जुदाई का सोच के उदास सी हो गई, उसने भी बहुत धीरे से कहा..” क्या आप कश्मीर जाकर मुझे भूल जायेंगे?”
“असंभव, यह तो हो ही नहीं सकता!”
“फिर मैं कैसे भूल सकती हूं, मैं भी इंसान हू!”

दोनों ने एक दूजे से वादा किया कि वह हमेशा एक दूसरे के संपर्क में रहेंगे और खबर लेते रहेंगे। और वही किया दोनों ने, कभी इंद्रजीत फोन कर लेता तो कभी अदिति। कभी-कभी तो इंद्रजीत लंबी चौड़ी चिट्ठी भेजता और उसका जवाब भी उतने प्यार से देती अदिति। बस दोनों की प्यार की गाड़ी चल पड़ी थी और अच्छे से चल रही थी। अदिति ने एमबीए में एडमिशन ले लिया और अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गई। इधर इंद्रजीत ने भी देश सेवा में अपने आप को निछावर कर दिया था। पर दोनों के मन में एक दूसरे की छवि इस तरह अंकित हो गई थी कि व्यस्तता के बीच में भी वे कभी एक दूसरे को भुला नहीं पाते थे।

अदिति के माता पिता को भी समझने में देर नहीं लगी थी कि वह इंद्रजीत से प्यार करती है। उन दोनों ने इस रिश्ते को मान लिया था। इंतजार था तो बस अदिति की पढ़ाई पूरी करके नौकरी करने तक का।
अदिति को एक अच्छी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिली सुनकर इंद्रजीत बहुत खुश हुआ था। वह मन ही मन सोचने लगा कि..”अब मेरा सपना पूरा हो जाएगा। घर जाकर मां पिताजी से बात करूंगा तथा अदिति के मम्मी पापा से भी जाकर मिलूंगा।”

इसी दौरान करगिल पर पाकिस्तानियों ने आक्रमण कर दिया, तो इंद्रजीत को भी पहाड़ की चोटी पर भेजा गया टुकड़ी के साथ। कई दिनों तक लड़ाई होती रही। एकदिन मिसाइल से सेना की टुकड़ी पर बमबारी करने लगी पाकिस्तानी सेना। इधर से भी जवाबी कार्यवाही होने लगी, इसी में कई सेना घायल हो गए। घायलों में इंद्रजीत भी था, वह बहुत बुरी तरह घायल हुआ था।

अदिति के मौसी ने अदिति को खबर दी कि..” इंद्रजीत बुरी तरह घायल हुआ है और अस्पताल में भर्ती है। तुम देखना चाहती हो तो आकर देख लो।” फिर क्या था अदिति जैसी थी वैसी चल पड़ी इंद्रजीत को देखने के लिए। अस्पताल जाने के बाद पता चला कि उसकी दोनो टांगे कट गई थी। डॉक्टरों ने बताया था, टांगे कटे बिना इंद्रजीत को बचाना मुश्किल था। अदिति के पांव तले से जमीन खिसक गई। इंद्रजीत का सामना कैसे करेगी समझ में नहीं आ रहा था, परंतु उसने हौसला रखा और इंद्रजीत से मिली। जब तक इंद्रजीत को अस्पताल से छुट्टी नहीं मिली, तब तक अदिति शिमला में रही और रोज अस्पताल में जाकर इंद्रजीत से मिलती रही और उसका हौसला बढ़ाती रही।
“अदिति, तुमसे कुछ बात करनी है मुझे। पर.. कैसे करूं समझ में नहीं आ रहा है। तुम हौसला दो तो मैं बात शुरू करूं।”.. इंद्रजीत ने धीरे से कहा।
अदिति ने, इंद्रजीत का हाथ अपने हाथों में लेकर सहलाते हुए कहा..” हां, कहो क्या कहना चाहते हो? कोई तकलीफ हो रही है क्या?”
“नहीं मेरा मतलब है, अदिति.. तुम.. अब और मेरे लिए इंतजार मत करो। कोई अच्छा लड़का देखकर शादी कर लो।”.. कहते कहते इंद्रजीत की आंखों की कोरों में मोती जैसे दो आंसू चमकने लगे।
इंद्रजीत की बातें सुनकर एक क्षण तो अदिति को लगा कि वह जोर-जोर से रोने लगेगी पर.. अपने आप को शांत करते हुए उसने शांति से कहा..” यह संभव नहीं है इंद्रजीत! मैंने तुमसे प्यार किया और तुम ही से शादी करना है। मैं किसी और से शादी का तो मैं सोच भी नहीं सकती।”
“मेरे साथ शादी करके तुम्हें दुख तकलीफ के सिवाय और क्या मिलेगा? क्या तुम खुश रह पाओगी मेरे साथ? मैं तुम्हें कैसे खुश रख पाऊंगा? जरा मेरी हालत तो देखो, व्हील चेयर पर आ गया हूं मैं। एक अपंग के साथ शादी करके अपनी जिंदगी क्यों खराब करना चाहती हो तुम?”.. इंद्रजीत ने बड़ी मुश्किल से अपनी आंखों के आंसू को रोके और थोड़ी सख्ती दिखाई।
“तुम्हें ऐसी हालत में छोड़कर, मैं किसी और से शादी कर लूं तो क्या मैं किसी और के साथ न्याय कर पाऊंगी? तुम ही सोचो जरा एक बार कि तुम्हारी यादें मैं दिल से भुला पाऊंगी? नहीं इंद्रजीत यह संभव नहीं है!”.. अदिति की आंखों से दो आंसू लुढ़ककर कपोलों पर आ गिरे।
“तुम्हें भूलना ही होगा मुझे। मैं तुम्हारी जिंदगी इस तरह से बर्बाद नहीं होने दूंगा। यह मैं नहीं कर सकता!”.. इंद्रजीत की आवाज में थोड़ी सख्ती थी।
“ठीक है, तुम सोच लो अदिति नाम की एक लड़की थी, जो मर गई है! तब तो तुम्हें शांति मिलेगी ना। तब रह लेना अकेले तुम।”.. अदिति सिसक सिसक कर रोने लगी!
“ऐसी बात करके मेरे दुख को ना बढ़ाओ अदिति। मैं तुम्हें सुखी देखना चाहता हूं, बस इसलिए कह रहा था!”.. इंद्रजीत ने अदिति के आंसू पूछते हुए कहा।
“एक बार तुम हां कह दो। बाकी मुझ पर छोड़ दो। तुम्हारी अदिति इतनी कमजोर और स्वार्थी नहीं है कि बुरे समय में वह तुम्हारा साथ छोड़ दे! अपने आप को संभालो, जीवन के एक हादसे से पूरा जीवन समाप्त नहीं हो जाता। तुम इतने कमजोर नहीं हो सकते इंद्रजीत। जीना तो पड़ेगा ही, तो क्यों ना हिम्मत के साथ हंसकर जिए”.. अदिति की बातों में दृढ़ता थी तथा आंखों में आत्मविश्वास स्पष्ट झलक रहा था।

अदिति की दृढ़ता तथा आत्मविश्वास को देख कर इंद्रजीत में भी वही आत्मविश्वास पुनः लौटकर आने लगा था। और.. इंद्रजीत की आंखों में भी खुशी की चमक आ गई थी। उसने कहा ..” हां,अदिति मैं तैयार हूं। हम दोनों मिलकर जीवन में आने वाले हर तूफान को झेल सकते हैं। यूं कहो कि तूफान हमारे हिम्मत को देख कर आगे बढ़ने का साहस नहीं करेगा।”
“यह हुई ना वही पुराने वाले इंद्रजीत वाली बात। मैं सोच रही थी, देश पर मर मिटने वाला इंद्रजीत, एक हादसे के बाद अपनी हिम्मत खोकर यू निराशा के अंधेरे में खो कैसे सकता है?”.. अदिति के चेहरे पर खुशी की चमक थी।

मन में एक दृढ़ संकल्प लेकर अदिति घर लौटी थी। घर लौटने पर उसने पापा को समझाने का बहुत प्रयास किया। पर.. मिस्टर शेखर, अपनी बेटी के भविष्य को लेकर आशंकित थे। इसलिए इंद्रजीत से शादी उनको मंजूर नहीं था। अदिति के मम्मी, पापा से बेटी का दुख देखा नहीं जा रहा था। आदिति ने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया था। इस बात से दोनों बहुत परेशान थे कि कहीं कोई गलत कदम उठाना ले वह।
“अदिति बेटा, दरवाजा खोलो! भीतर बैठ कर क्या कर रही हो? बाहर आओ!..” अदिति के मम्मी पापा ने आकर आवाज दी तो अदिति अतीत की गलियों से वर्तमान में आ गई। वह हड़बड़ा कर उठी और दरवाजा खोलते हुए कहा..” हां मम्मी, पापा क्या बात है?”
“कुछ नहीं, हम थोड़ी देर तुम्हारे साथ बैठकर बातें करना चाहते हैं।..” अदिति के मम्मी ने कहा।
“अब बातें करने को क्या रह क्या गया हैं मम्मी, आप सब मेरा फैसला जानते हैं!”.. अदिति ने सर झुका कर जवाब दिया।
“हमें स्वीकार है तुम्हारा फैसला। अपनी बेटी को हम यूं ही उदास कमरे में बंद नहीं देख सकते। हमेशा खिल खिलाने वाली हमारी अदिति जाने कहां खो गई है। हम अपने आदिति को वापस पाना चाहते हैं।”.. आदिति के मम्मी की आंखों की कोरें भीगी हुई थी।
“तो.. आप दोनों को स्वीकार है मेरा फैसला।”.. अदिति ने सिर उठाकर चहकते हुए कहा।
“हां बेटा हम दोनों कल ही शिमला जा रहे हैं, इंद्रजीत के मम्मी, पापा से बात करने के लिए और शादी की तारीख तय करने के लिए।”.. अदिति के मम्मी, पापा ने अपना फैसला सुना दिया और दोनों उठ कर चले गए जाने की तैयारी करने के लिए।
अदिति के मन में जैसे खुशियों की फुलझड़ियां छूट रही थी। वह मन ही मन गुनगुनाने लगी..” मैं तेरे प्यार में मर ना जाऊं कहीं, तू मुझे आजमाने की कोशिश ना कर….!!!

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com