कविता

कुछ बिखरे हुए पन्ने…

मेरे तजुर्बे उनकी उम्र से ज्यादा है पर उनकी उम्र का गुरूर नहीं जाता |
डाई करवा ली है बाल जो हो गए सफेद धूप में, बाल सफेद नहीं किए डायलॉग नहीं जाता ||
अपनी चलाना ,मनवाना, गलत हो या सही
यह बंधन, यह रस्में रीति रिवाज नहीं जाता ||
मेरे तजुर्बे ..
कब्र में बैठे साथी इंतजार कर रहे हैं हजूर
पर सांसों को बटोर के उल्टा सीधा बोलना नहीं जाता,
क्या जवाब दे अब ऊपर वाला ही यह काम करेगा
हमारा पराया धन पराया घर बोल बोल कर सताना नहीं जाता,
कुछ होते हैं एहसान फरामोश उनके लिए भी एक लाइन है
कितना भी कर दो ऐसों के लिए हमें क्या किया अब तक सुनाना नहीं जाता ||
मेरे तजुर्बे…
कभी हंसने का दिल करता है बहुत जोर जोर से जमाने में
पर सब पूछेंगे पागल हो गए हो क्या? यही बताना नहीं आता !!
कैसी दुनिया है ना होने देती है ना सोने देती है
और हम हैं कि उनको चिढ़ाने के लिए हम मुस्कुरा देते हैं
और सुनिए फिर सब कहते हैं कि इनका मुस्कुराना नहीं जाता ||
डॉ श्‍वेता वार्ष्णेय
बिसौली

युक्ति वार्ष्णेय 'सरला'

शिक्षा : एम टेक (कम्प्यूटर साइन्स) व्यव्साय : सी इ ओ एंड फ़ाउन्डर आफ़ "युकी क्लासेस " फ़ोर्मर सहायक प्रोफ़ेसर, हैड आफ़ कार्पोरेट अफ़ैयर्स, मोटिवेशनल ट्रैनर, करीयर काउन्स्लर , लेखिका, कवियत्री, समाज सेविका ! निवासी : जलाली, अलीगढ़ उत्तर प्रदेश वर्तमान निवास स्थान : मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश प्रकाशन : उत्तरांचल दर्पण, वसुंधरा दीप , न्यूज़ प्रिंट ,अमन केसरी, शाह टाइम्स , पंखुड़ी, उत्तरांचल दीप , विजय दर्पण टाइम्स, वर्तमान अंकुर, वार्ष्णेय पत्रिका, खादी और खाकी, न्यूजबैंच, नव भारत टाइम्स, अमर उजाला, दैनिक जागरण, जन लोकमत, पंजाब केसरी, अमर उजाला काव्य ! विधा : स्वतन्त्र लेखन शौक : इंटरनेट की दुनिया के रहस्य जानना, जिन्दगी की पाठ शाला में हरदम सीखना, पुस्तकें पढना, नए जगह घूमना और वहाँ का इतिहास और संस्कृति जानना, स्कैचिन्ग करना, कैलिग्राफ़ी, लोगो से मुखातिब होना इत्यादि |