भजन/भावगीत

श्याम पूजारन

जाऊं ना जमुना तीर
माने ना मन अधीर
देख मोहे श्याम नित सताए रे।
कह दे आज श्याम से,
आए ना वो पीछे पीछे,
बैठ जमुना तीर ना बंसी बजाए रे।

सुन बंसी की धुन,
बस में रहे ना मन,
पास उसके खींची मैं चली जाऊं रे।
कैसा जादू उसकी,
धुन में बंसी की
मैं भी श्याम, श्याम गुनगुनाऊं रे।

लाख करूं मैं जतन,
श्याम को भूले ना मन,
मैं तो बावरिया बन घूमूं रे।
सुनकर बंसी मधुर,
पाऊं ना घर में ठहर,
जमुना तट खींची चली आऊं रे।

कैसी लगी लगन,
तुझसे हे मनमोहन,
मैं तो तेरी दीवानी भई रे।
सौंप तुझे अपना मन,
बुझ जाए सारा अगन,
मैं तो तेरी पूजारन, तुझमें समाई रे।

पूर्णतः मौलिक- ज्योत्सना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]