कविता – निःशब्द
मैं चुप रहता था
मन में कई अरमान थे
पर मैं
उन अरमानों को
अन्दर ही अन्दर
पीता था
ज़िन्दगी से तो
बेज़ार न था
पर बोलता कम था
सुनता अधिक था
देखता ज्यादा था
कुछ तो बोलो
सभी कहने लगे
मैं फिर भी चुप था
बोलता कम था
शब्दों का तोहफ़ा
हरेक को मिलता है
मुझे भी मिला था
लोग शब्द बोलते थे
मैं शब्द सुनता था
शब्दों का अम्बार
इकट्ठा हो गया था
अपनों ने कहा
बोलते नहीं तो लिखो
लिखने लगा
इधर उधर बिखरे शब्द
पंक्तिबद्ध होने लगे
केश-विन्यास की भाँति
शब्द-विन्यास होने लगे
अलग अलग अभिकल्प
सजने लगे
मैं अभी भी नहीं बोलता
शब्द मेरे बोलने लगे
लोग हैरान हैं
मैं निःशब्द हूँ
सुदर्शन खन्ना
मेरा परिचय
21 जुलाई 2018 को ब्लॉग लेखन के क्षेत्र में मेरे पदार्पण के लिए मैं अपनी सहधर्मिणी स्मृति, दोनों बेटियों स्वाति और सौम्या के प्रति कृतज्ञ हूँ । मेरे स्वर्गीय पिताजी श्री कृष्ण कुमार खन्ना जी के प्रति मैं आजीवन ऋणी रहूँगा जिन्होंने मुझे ज्ञान प्राप्त करने में हमेशा मदद की और अपनी सामर्थ्य से भी बढ़कर मेरा संबल बढ़ाया । मेरी पूजनीय माता श्रीमती राज रानी खन्ना का ममत्व और आशीर्वाद मेरे लिये स्तम्भ का कार्य करता है । वे इस समय 81 वर्ष की हैं । ब्लॉग लेखन की शुरुआत का मेरे लिए अर्थ था एक बीज बोया जाना । बीज बोने के बाद उसका प्रस्फुटन होकर एक पौधे का रूप लेना और फिर आशीर्वाद रूपी खाद लेकर वृक्ष में विकसित होने की प्रक्रिया का आरम्भ होना । अतः ‘दरख्त’ विषय से बलॉग लेखन की शुरुआत करना मुख्य कारण रहा । अपना ब्लॉग पर ‘सुदर्शन नवयुग’ नामक वृक्ष को आपका स्नेह और आशीर्वाद निरन्तर मिल रहा है और यह विकसित हो रहा है, इसके लिए मैं आभारी हूँ । सुदर्शन और नवयुग दोनों ही नाम माता-पिता के दिए हुए हैं अतः ‘सुदर्शन नवयुग’ ब्लॉग को मैं अपने माता-पिता को समर्पित करता हूँ ।
पिताजी का इन्दौर स्थित संस्थान ‘मुद्र कला मन्दिर’ टाइपिंग व शॉर्टहॅण्ड की विधाओं के नाम को सार्थक करता था । दिल्ली आने के बाद पिताजी ने नाम रखा ‘नवयुग कमर्शियल कॉलेज’ । ‘नवयुग’ इसलिए कि पिताजी का पढ़ाने का तरीका लीक से हटकर एकदम नवीन होता था । ‘नवयुग कमर्शियल कॉलेज’ नाम आज भी लोगों की सेवा में कार्यरत है ।
मैंने अपने जीवनकाल में हिन्दी व अंग्रेजी भाषी अनेक शोध-पत्रों का व्याकरण और भाषा-सम्मत विवेचन किया । अनेक लेखकों ने अपने शोध-ग्रंथों में उल्लेख कर धन्यवाद ज्ञापन किया । मैंने प्रो. अशोक चावला जी द्वारा प्रकाशित ज्योतिष पर आधारित मासिक पत्रिका का दस वर्षों तक सम्पादन किया ।
मैं द्रोणाचार्य भूपेन्द्र धवन बॉडी-बिल्डिंग व पॉवर-लिफ्टिंग कोच के साथ पिछले 35 वर्षों से सक्रिय रूप से जुड़ा हूँ । मुझे सम्मान के तौर पर अनेक ट्रॉफियाँ पुरस्कार स्वरूप मिली हैं । एक प्रतियोगिता में बाँटे गए प्रमाण-पत्रों को मेरे द्वारा लिखवाया गया क्योंकि पिताजी द्वारा सिखाये गये सुलेख की प्रतिभा से वे लोग परिचित थे । 400 के लगभग प्रमाणपत्र लिखे। विजेता और भाग लेने वाले पंक्तिबद्ध खड़े होते थे लिखवाने के लिए ।
लालीबाई चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) से भी पिछले 20 वर्षों से सक्रिय रूप से जुड़ा हूँ । नेत्र जाँच और रक्तदान संबंधी आयोजनों में सक्रिय सहयोग रहता है ।
मेरे वर्तमान परिवार में मेरी सहधर्मिणी स्मृति, बेटियों स्वाति व सौम्या ने प्रबुद्धजनों से मेरे मेल-मिलाप को देखते हुए बार-बार ब्लॉग लिखने का कहा और देरी के लिए नाराजगी भी जताते रहे । अंततः वे 21 जुलाई 2018 को सफल हो गए जब मेरा पहला ब्लॉग छपा । और भी अनेक बातें होंगी, शेष फिर कभी ।
ब्लॉग साइट- सुदर्शन नवयुग
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/author/mudrakalagmail-com/
फिर सदाबहार काव्यालय के लिए कविताएं भेजने के लिए ई.मेल-
[email protected]
आदरणीय सुदर्शन जी, आपकी कविता आपके हृदय् से निकले हुए सच्चे
शब्द हैं. बहुत सुन्दर, स्वच्छ , कविता. बीज से दरख्त के बीच हिन्दी
इंग्लिश शोध पत्र, बॉडी बिल्डिंग, सुलेख, ज्योतिष पत्रिका का संपादन,
चैरिटाबल ट्रस्ट , और अब धमाके के ब्लॉग. आपकी विद्वता के आगे
नि:शब्द तो में हो गया हूँ. इस विशाल वट वृक्ष के नीचे छाँव पाठकों,
ब्लॉगरों को अवश्य मिलेगी.
प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि सुदर्शन भाई की यह कविता आपको बहुत अच्छी लगी. आपकी प्रतिक्रिया भी निःशब्द करने वाली है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
प्रिय ब्लॉगर सुदर्शन भाई जी, कितनी अद्भुत कविता लिखी है आपने! कितनी सारगर्भित है, वर्णन करना नुश्किल है. हमारे पिताजी बार-बार हमें समझाया करते थे-
भगवान ने कान दो दिए हैं उनका काम एक है इसलिए सुनो ज्यादा, आंखें दो दी हैं उनका काम एक है देखो ज्यादा, मुख एक दिया है और उसको दो काम करने पड़ते हैं- खाने का भी और बोलने का भी. इसलिए खाओ भी कम और बोलो भी कम-
ज़िन्दगी से तो
बेज़ार न था
पर बोलता कम था
सुनता अधिक था
देखता ज्यादा था
आप आज भी निःशब्द शब्द हैं, तभी तो आपके शब्द कमाल करते हैं. इतनी सुंदर-सदाबहार कविता के लिए बहुत-बहुत बधाइयां.