कविता

यादों के सहारे

यादों के सहारे
पत्थरों की मुरत
पत्थरों की मिनारें
समंदर उफान भरता हुआ
मैं, मौन धारण बैठा किनारे

कुछ रास्तों में रूका था मैं
एक बार नहीं!
कई बार झुका था मैं
अब संवेदनाएं महज धोखा हैं
लूट लेता है हर कोई
जिस किसी को मिलता मौका है
लगता है ,समझ नहीं पाया
जिंदगी के इशारे
हृदय की कठोरता में
भी आ गई हैं दरारें
यादों के सहारे
पत्थरों की मुरत
पत्थरों की मिनारें

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733