मुक्तक/दोहा

चंद दोहे आरक्षण के नाम

” दीमक वाले देश में,बस कुर्सी की होड़।
आरक्षण की आड़ में,पनप रहा है कोढ़।।”

“आरक्षण धरना लगे, देशद्रोह सम पाप।
गदहे दौड़े कब कभी,जीन कसें क्यूँ आप?”

“आरक्षण की मार से,योग्य हुए लाचार।
सच्चा मिट्टी में पड़ा, झूठे का व्यापार।।”

“गगन धरा सब रो रहे,मानव को नहिं चैन।
आरक्षण से बाँटता,खुद को ही दिन-रैन।।”

“मंजिल मुश्किल कब रही,पा ही लेते योग्य।
आरक्षण ये कर रहा,होते पंगु अयोग्य।।”
#निवेदिता