कविता

मौन

मन की अभिव्यक्ति
अगर मौन हो जाएं
तो दर्द बनकर चुभती है अन्तस् में

मौन की प्रकृति
साहस नहीं तोड़ती
बल्कि अपना दम तोड़ती है

नहीं लांघ पाती मर्यादाओं के घूंघट को
अपने मन को घायल कर
रोकती है उसे कुछ कहने सुनने से

मजबूरियों का चोला
जबरन पहनाया जाता है
ताकि चुप्पी बरकरार रहे जुवां पे

मौन का चेहरा भले खामोश हो
पर आत्मा अंतर्द्वंद से भरा होता है

मौन नदी की भांति
अपने भीतर अनगिनत अवसाद समेटे
बहती रहती है
शांत धारा में।

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]