कुण्डली/छंद

मतगयंत सवैया – होली विशेष

राग लिये अनुराग हि फागुन में फगवा अब गाय रही है
डाल गुलाल कलाधर पे वृषभानु किशोरि रिझाय रही है
ग्वालन टोल हसे सब ग्वालिन नैनन को मटकाय रही है
मार रही पिचकारिन रंगन गालन पे लगवाय रही है

रंग लगाकर भंग पिलाकर,खेलते मोहन है जब होरी
ग्वालिन बालन रंग दिये सब, श्याम मिले अब सोचत छोरी
लाल हुआ जब वानर सा मुख, देखत रूप हसे बृज गोरी
आंगन देखते बागन देखते, श्याम मिले न यहाँ बृज छोरी

हाथन पै बृज ग्वालियर लेकर, मोहन को हि गुलाल लगावे
मोहन रंग दियो जब गालन, दूर खडी़ सखियाँ मुसकावै
प्रीत उमंग उठे उर में जब, ताल मृदंग हि ग्वाल बजावै
औरन रंग चढ़ न यहाँ जब, श्याम हि रंगने ग्वालिन भावै

रंग लगा जब प्रीतम ने सुन, अंग सभी जब रंग हि डाला
लाल गुलाल लगाकर ये जब, प्रीत भरा दिय हो जब प्याला
प्रीतम प्रेम भरी पिचकारियों, से मनवा अब रंग हि डाला
दूज यहाँ अब रंग न घोलत, श्यामल रंगन को बृजबालाा

भानु शर्मा रंज

भानु शर्मा रंज

कवि और गीतकार धौलपुर राजस्थान M-7976900735, 7374060400