गीत/नवगीत

मुहब्बत भी डिजिटल अब हो गयी है

मुहब्बत भी डिजिटल अब हो गयी है
गुलाबों की खुश्बू कहीं खो गयी है
पहले तो ख़त भी महका किये थे।
हाँथों ने चुम्बन लिखकर दिये थे।।
लगाया था सीने चूमा था उसको
पाकर खुशी से झूमा था उसको
ऊपर लिखा था कैसे हो सोना
मै भी हूँ अच्छी तुम ठीक होना
तेरी याद आकर जाती नहीं है
हमें नींद रातों को आती नही है
पाकर इसे तुम उत्तर भी लिखना
आऊँगी छतपर खिड़की में दिखना
खामोशियों से फिर बात होगी
जिन्दा रहे तो मुलाकात होगी
अब फेसबुक पर हैं प्यार होते
वाटसअप पे इमोजी हंसते है रोते
हैल्लो भी करते कभी हाय होता
गुडनाईट के संग कभी बाय होता
एहसास वो सारे दिखते नही है
बाजार में ख़त अब बिकते नहीं है
मुहब्बत भी डिजिटल अब हो गयी है
गुलाबों की खुश्बू कहीं खो गयी है

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) [email protected] जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,