ग़ज़ल
फिरकापरस्तियों की होगी हार एक दिन
जीतेगा देखना जरूर प्यार एक दिन
खुद को शिकारी मानते हैं जो बहुत बड़ा
वे भी बनेगें देखना शिकार एक दिन
तुमको यक़ीन हो न हो मुझे यक़ीन है
फिर से बहेगी प्रेम की बयार एक दिन
रिश्तों के बाग को वफ़ा से सींचते रहो
हर हाल लौट आएगी बहार एक दिन
दिल में गुबार को दबा रहे हो जिस तरह
ले लेगा जान आपकी गुबार एक दिन
मुझको मेरी वफ़ा पे है यक़ीन देखना
तुम टूटकर करोगे मुझ से प्यार एक दिन
दर पे लगी हुई निगाह को यक़ीन है
होगा जरूर ख़त्म इंतज़ार एक दिन
— सतीश बंसल