शिक्षा में वो ताकत है जो पूरे देश बदल सकती है, लेकिन अफसोस हमारा शिक्षा मंत्रालय आज गहरी नींद में सो रहा है। हमें अपने आप पर शर्म आती है कि आज आजादी के इतने वर्षों के बाद भी हम अपनी राष्ट्र भाषा निश्चित नहीं कर सके। दिन प्रतिदिन हिंदी का स्तर गिरता जा रहा है। उसे हेय दृष्टि से देखा जाता है। यही कारण है कि आज किसी भी धर्म का, किसी भी वर्ग का कोई भी बच्चा हिन्दी माध्यम से शिक्षा नहीं ग्रहण करना चाहता है। भले ही अंग्रेजी उसके सिर से ही निकल जाती हो। एक ही कक्षा में दो बार फेल होना पड़ता हो। भले ही उसे अंग्रेजी में रट कर पास होना पड़े।
पर पढ़ना अंग्रेजी माध्यम से ही है। हिन्दी को लेकर आज पूरे राष्ट्र की स्थिति अति शोचनीय है।
यू.पी बोर्ड की दसवीं की परीक्षा में पांच लाख बच्चे हिन्दी में फेल हुए हैं। यह हिन्दू राष्ट्र के लिए अति गर्व का विषय है। आज स्कूलों में हिन्दी विषय के अच्छे अध्यापक नहीं हैं। हिन्दी को बेचारी बना कर क्यों रखा है।उसे जड़ से उखाड़ क्यों नहीं फेंकते?
अधमरे की स्थिति कितनी असहनीय होती है। एक भाषा के रूप में यह ड्रामा क्यों कर रखा है। नया नियम लागू कीजिए। अंग्रेजी को राष्ट्र भाषा घोषित करके गुलामी का आनंद लीजिए
क्योंकि उस समय हम पैदा नहीं हुए थे, इसलिए गुलामी का आनंद नहीं ले सके।
राज्यों की भाषा और रीति रिवाज तो पहले ही मरने के कगार पर खड़े हैं। आज हिन्दी सिर्फ थोड़ी बहुत बोलने के चलन में रह गई है। देवनागरी लिपि का गला घोट कर मारा जा रहा है। देवनागरी की बहनें असमिया, उड़िया, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलगु आदि सभी राज्यों की लिपियां तो पहले मृतप्राय हो चुकी हैं।
हमारा शिक्षा मंत्रालय क्या काम करता है। किसी को कुछ नहीं पता। सी.बी.एस.ई के सिलेबस का बच्चों के व्यक्तित्व के विकास से कोई लेना देना नहीं है। बस रट कर डिग्री प्राप्त करना है। कई सालों से सिलेबस में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। लकीर के फकीर बने हुए हैं। इतने सारे शिक्षा बोर्ड की क्या आवश्यकता है। यह बोर्ड इस लिए हैं। जिससे की स्टेट बोर्ड वाला बच्चा सी.बी. एस.ई वाले बच्चे से अपने को हीन समझे,और सी.बी.एस.ई वाले बच्चे आई.सी.एस.ई वाले बच्चों से अपने को ज्ञान में कम आंके। जब हमने शिक्षा को ही बांट दिया है तो देश कहां से एक होगा। आज भी इतिहास में हमारा बच्चा शिवाजी, महाराणा प्रताप आदि महान विभूतियों को न पढ़कर हेनरी, विलियम को ही पढ़ रहा है। राष्ट्र के विकास में जिसका कोई महत्व नहीं है। नैतिक शिक्षा को तो पूरी तरह ताक पर उठा कर रख दिया है क्योंकि उसका बच्चे के जीवन और व्यक्तित्व के विकास में कोई महत्व नहीं है। कुंभकरण भी छह महीने बाद जाग कर काम पर लग जाता था। पर हमारा शिक्षा मंत्रालय कब जागेगा। ईश्वर के सिवा कोई नहीं जानता।
अब तो आप सब समझ ही गए होंगे कि यह मंत्रालय कितनी सच्चाई और सतर्कता से अपना कार्य कर रहा है।
भारत माता की जय ! वंदे मातरम् !!
— निशा नंदिनी भारतीय