कविता

मन की कोकिल

जागती ही  रही ,रात मद से भरी
मन की कोकिल, विरह राग गाती रही।
तुम न थे, पर चकोरी भरी नेह से
चाँद होने का बस भास पाती रही।।
जो संजोये थे मन ने, मगन हो सपन ।
विरह की आग में,हो गये वो हवन।
मालती ने पलक खोल, सिहरा  दिया,
वो क्षितिज देख बुझता, ये मन का दिया।।
रात विश्वास थी, आसरा प्रीत का
भोर छाती रही, आस जाती रही।
तुम न थे, पर चकोरी भरी नेह से
चाँद होने का बस भास पाती रही।
है बनाने लगी, भोर  रंगोलियाँ
जा रही पात्र ले, मोहिनी टोलियाँ
बाँसुरी पे बजी राग आसावरी
हो रही मुग्ध तरुवर की भी डालियाँ
कूल कालिंदी पे छा गई रोशनी
आँख मे वेदना झिलमिलाती रही।
तुम न थे, पर चकोरी भरी नेह से
चाँद होने का बस भास पाती रही।
— रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)*
इंदौर

रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)

1- रचनाकार का पूरा नाम- श्रीमती रागिनी स्वर्णकार (शर्मा) 2- पिता का नाम-श्री पूरन चंद सोनी 3- माता का नाम -श्रीमती पार्वती 4- पति / पत्नी का नाम- श्री अरुण शर्मा 5- वर्तमान/स्थायी पता -डायमंड रेजीडेंसी, a सेक्टर सिलिकॉन सिटी राऊ ,इंदौर ,जिला-इंदौर मध्यप्रदेश 6- फोन नं/वाट्स एप नं. - 9754835741 7- जन्म / जन्म स्थान-बेगमगंज ,जिला- रायसेन जन्मतिथि 01,/05/1970 8- शिक्षा /व्यवसाय- बी.एस-सी.,एम .ए.(हिंदी,इंग्लिश) एम.एड. 9- प्रकाशित रचनाओं की संख्या-- 300 रचनाएँ प्रकाशित 10- प्रकाशित रचनाओं का विवरण । (लगभग 300 रचनाएँ समाचार पत्र ,संचार एक्सप्रेस ,निशात टाईम्स ,रीडर एक्सप्रेस भोपाल, लोकजंग भोपाल,दैनिक भास्कर भोपाल,देशबन्धु भोपाल ,से प्रकाशित हो चुकी हैं ) संकल्प शालेय पत्रिका का 7 वर्ष से सम्पादन