कविता
मेरे रब ने भी न मुझको आज़माया , वहाँ से ।
खत्म होती थी ,बर्दाश्त की मेरी हद जहाँ से ।।
तूने इतना सितम ढाया है , रुलाया मुझको ।
मौका देने को लायें हम,अब सब्र कहाँ से ।।
बेसबब होती नही है, खामोशी यारों ।
छीन लेता है आवाज़ ,दर्द हद से ज़्यादा ।।
होते एहसास रोती अखियों,बरसते बदलों के ।
बने आशियाँ माटियों से जिनके,हो दिल टूटे ज़्यादा ।।
— कवयित्री अर्चना सिंह