कविता

माँ का ऋण

माँ तूने किये हैं इतने उपकार मुझपर,
जिसका ना हिसाब कभी रख पाऊँगी,
चाहे जीवन भर कर लूँ सेवा मैं तुम्हारी,
फिर भी ना कभी यह ऋण तेरा चुका पाऊँगी।।

सारा बचपन तेरी गोद में बीता,
हुई बड़ी मैं तेरी आँचल की छाया में,
ख़ूब सताया तुझे मैने बचपन में,
फिर भी ना कभी यह ऋण तेरा चुका पाऊँगी।।

तूने बनाया इस क़ाबिल मुझे माँ,
अपने पैरों पर हुई खड़ी आज मैं,
तुमने बचपन से लेकर आज तक दिया है साथ मेरा,
फिर भी ना कभी यह ऋण चुका पाऊँगी।।

भगवान का अवतार होता है माँ का रूप धरती पर,
माँ की सेवा करने से होता जीवन साकार मेरा,
सौभाग्य मिला मुझे तुम्हारी सेवा करने का,
फिर भी ना कभी यह ऋण चुका पाऊँगी।।

मेरी त्रुटियों को माफ़ तुम कर देना,
एक बार फिर से यह उपकार तुम मुझ पर कर देना,
आज भी आगे बढ़ने का आशिर्वाद चाहती हूँ मैं तुमसे,
फिर भी ना कभी यह ऋण चुका पाऊँगी।।

मौलिक रचना
नूतन गर्ग(दिल्ली)

*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक