गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

दिल की रूमानियत दिल ही जानता है
पत्थरों मुर्दों को कौन ज़िन्दा मानता है

मैनें कहा नहीं उसने सुन लिया सब कुछ
मौन गुफ्तगू हर इशारा पहचानता है

लब हिले भी नहीं बयाँ हक़ीक़त हो गयी
मोहब्बत इबादत में बस यही समानता है

जब भी चाहता हूँ जी लेता हूँ बचपन
खाक तंग गलियों की वरना कौन छानता है

उठ एक और कोशिश तू कर ही ले मणि
जुनून दिल जीतने का कौन ठानता है

मनीष मिश्रा मणि