कविता

यूँ जिंदगी मेरी नीलम कर गयी

यूँ जिंदगी मेरी नीलम कर गयी
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यूँ जिंदगी मेरी नीलम कर गयी,
ना चाहते हुए भी बदनाम कर गयी।
पापा की थी परी जबसे हूर बन गयी,
बदनाम कर के बाप को मशहूर बन गयी।।

नाजों से तुमको पाला था नासूर बन गयी,
खुशियों भरे भवन को गम में चूर कर गयी।
मैं दोष उसे दूँ क्या जिसे जानता नहीं,
जब लाडली ही बाप को मजबूर कर गयी।।

बेटी तुम्हे क्या मरूँगा मैं खुद ही मरा हूँ,
तू जानती ना लिए कितना दर्द खड़ा हूँ।
मशहूर होने का दिखाया तूने जो चरित्र,
तेरी चाल से ओ पुत्री सुबहो शाम मरा हूँ।।

तू जानती नहीं है तेरे माँ की क्या दशा,
जो सामने आया वो मुहं दबा के है हंसा।
उसे जग हँसाई झेलने की आई ना कला,
बिस्तर पे लेटी है दावा में प्राण है बसा।।

तुमको मिले तेरी ख़ुशी, मुझको मिले गम,
मशहूर तू हुयी बेटी, तो बदनाम हुये हम।
कैसे कहूं की जीत कर भी हारी नहीं तू,
बदनाम मैं हुआ जो तो कारण बनी है तू।।

कहते हैं लोग देखो फलानी का बाप है,
बेशर्म है यही, यही भगोड़ी का बाप है।
मर जाना था जिसे चुल्लू भर पानी में,
बाजार घूमता यह निगोड़ी का बाप है।।

अब भी चाहता हूँ छोरी खुश रहे सदा,
ना मिले छोरी तुझको मुझ जैसे सजा।
ना भागे तेरी छोरी अपने यार के शहर,
हाँथ जोड़ प्रभु से मैं वर मांगता सदा।।
।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदीकला, सुलतानपुर
7978869045

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं