कविता

घाटी की रौनक लौटी

हमने जाना हमने पहचाना
दिल को रखा आपके पास
खुश रहो तुम सब
और मनाओ हर्षोल्लास।
घाटी की वादियाँ
गुलजार होने लगी
अमन चैन और मानवता
बहाल होने लगी।
केसर की कलियाँ
गुलमोहर गुलजार है
बच्चों के चेहरो पर
निखार ही निखार है।
मत फैलाओ कोई अफवाह
आया खुशी का त्योहार
मिलजुलकर मनाओ
आपस में बाँटो प्यार ही प्यार
भारत माँ को है इंतजार।
नफरत और दूरियाँ कम हुई
मानवता की अब जीत हुई
नासूर बन चुके सिस्टम से
हारा आतंक और अलगाव है।
खुशियों के दीप जलाओ
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे सजाओ
तीखी वाणी की प्रहार से
बना लो दूरी अब
एक भारत अखंड भारत
को न कोई मजबूरी अब।
— आशुतोष

आशुतोष झा

पटना बिहार M- 9852842667 (wtsap)