राजनीति

अनुच्छेद 370 समाप्त :अब देश भर में एक निशान एक विधान

देश की संसद ने एक ऐतिहासिक फैसले के तहत जम्मू-कश्मीर के बहुचर्चित एवं विवादित आर्टिकल 370 को अब निरस्त कर दिया है। मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के प्रथम संसद सत्र के दौरान बीते 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में ऐतिहासिक ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019’ पेश किया जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख को विभाजित कर दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में पुनर्गठन करने का प्रस्ताव किया गया। प्रस्ताव के अनुसार जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र में अपनी विधायिका होगी जबकि लद्दाख बिना विधानसभावाला केंद्रशासित क्षेत्र होगा। संसद की मंजूरी और राष्ट्रपति की अधिसूचना के बाद अब राज्य से अनुच्छेद 370 समाप्त हो गई है। और इसके साथ ही अब दो नए केंद्र शासित प्रदेश क्रमशः जम्मू-कश्मीर और लद्दाख 31 अक्टूबर से अस्तित्व में आएंगे। फिलहाल अनुच्छेद 370 को लेकर हंगामा जारी है। कुछ दल और संगठन 370 को हटाए जाने का विरोध कर रहें हैं जबकि कुछ दल और संगठन इसके समर्थन में अपनी दलीलें दे रहें हैं। इस अनुच्छेद को हटाने का विरोध करने वालों का सोचना है कि इससे बाकी भारत के लोगों को भी जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने का अधिकार मिल जाएगा। साथ ही वे नौकरी और अन्य सरकारी मदद के भी हकदार हो जाएंगे। जिससे उनकी जनसंख्या में बदलाव आ जाएगा और वे अपने अधिकारों से वंचित होंगे। वहीं इस फैसले का समर्थन कर रहे लोगों का मानना है कि इस अनुच्छेद की वजह से देश के नागरिकों के बीच भेद पैदा हो रहा है। अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में 2014 में दाखिल किए गए एक याचिका में तर्क दिया गया था कि यह अनुच्छेद भारत की भावना के खिलाफ और अलगाववाद को बढ़ावा देने वाला प्रावधान है। जबकि कश्मीर भी भारत का अभिन्न अंग है। ऐसे में ये अनुच्छेद एक ही देश के नागरिकों के बीच भेद पैदा करती है।

क्या है अनुच्छेद 370:

अनुच्छेद 370 को लेकर चल रहे विवादों को देखते हुए मन में अक्सर ही सवाल उठता है कि आखिर क्या है अनुच्छेद 370? और क्यों मचा है इस पर इतना घमासान? बात अगर अनुच्छेद 370 की करें तो भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक ऐसा लेख था, जो ‘अस्‍थायी प्रबंध’ के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाला राज्य का दर्जा प्रदान करता था। अनुच्छेद 370 के कारण ही भारत के अन्य राज्यों में लागू होने वाले कानून इस राज्य में नहीं होते थे। इतना ही नहीं बल्कि 1965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था। अनुच्छेद 370 द्वारा प्राप्त विशेषाधिकार के मुताबिक, भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों-रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिए ही कानून बना सकती थी। इसके अलाव भी अन्य कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती थी। राज्य के सभी नागरिक एक अलग कानून के दायरे के अंदर रहते थे, जिसमें नागरिकता, संपत्ति खरीदने का अधिकार और अन्य मूलभूत अधिकार शामिल थे। इसी धारा के कारण देश के दूसरे राज्यों के नागरिक इस राज्य में किसी भी तरीके की संपत्ति नहीं खरीद सकते थे।

क्या थे जम्मू-कश्मीर के विशेष अधिकार:

जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय होने के बाद तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए जम्मू-कश्मीर की जनता के हितों की रक्षा के उद्देश्य से अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर की जनता को कुछ विशेष अधिकार दिये गये। अस्थायी रूप से दिए गए इन विशेषाधिकारों के तहत संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार था लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित क़ानून को लागू करवाने के लिये केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिये होता था। इसी विशेष दर्ज़े के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती थी। और इस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं था। इसके अतिरिक्त 1976 का शहरी भूमि क़ानून भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था। इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि ख़रीदने का अधिकार था। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते थे। भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती थी। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता थी। जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज भी अलग था। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का था जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। जम्मू-कश्मीर के अंदर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं माना जाता था। और तो और भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश भी जम्मू-कश्मीर के अंदर मान्य नहीं होते थे। इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर की किसी महिला द्वारा भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह करने की स्थिति में उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जाती थी। वहीं इसके विपरीत अगर कोई महिला पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर लेती तो उस पाकिस्तानी व्यक्ति को इसका लाभ मिलता और उसे स्वतः ही जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती। धारा 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई (RTI) और सीएजी (CAG) जैसे कानून लागू नहीं होते थे। कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू था। कश्मीर में पंचायत को अधिकार प्राप्त नहीं था।

समाप्त हुए विशेषाधिकारः

संसद की मंजूरी और राष्ट्रपति की अधिसूचना के बाद राज्य से अनुच्छेद 370 समाप्त होते ही जम्मू-कश्मीर को मिलनेवाला विशेष राज्य का दर्जा भी समाप्त हो गया है। जिसके बाद अब जम्मू-कश्मीर में कुछ परिवर्तन भी देखने को मिलेंगे। जैसे, पहले जम्‍मू-कश्‍मीर का अपना अलग झंडा था। ऐसे में वहां के नागरिकों द्वारा भारत के राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना अनिवार्य नहीं था। पर अब जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा नहीं होगा और भारत के दूसरे हिस्‍सों की तरह यहां भी तिरंगा ही लहराया जाएगा। अब वहां के लोगों के लिए भी राष्‍ट्रीय ध्‍वज तिरंगे का सम्‍मान करना अनिवार्य हो गया है। जम्मू-कश्मीर में अब तिरंगे का अपमान या उसे जलाना या नुकसान पहुंचाना संगीन अपराध की श्रेणी में आएगा। तो वहीं पहले वोट का अधिकार भी सिर्फ जम्‍मू-कश्‍मीर के स्‍थायी नागरिकों को ही था। देश के दूसरे राज्‍यों के नागरिक को वहां मतदान का अधिकार नहीं था। पर अनुच्छेद 370 समाप्‍त किए जाने के साथ ही ‘वोट का अधिकार सिर्फ जम्‍मू-कश्‍मीर के स्‍थायी नागरिकों’ वाला प्रावधान समाप्‍त हो गया है। और अब देश के दूसरे राज्‍यों के नागरिकों को भी जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करवाने का और वोट करने का अधिकार मिल गया है। पहले जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता (भारत और कश्मीर) थी। पर अब जम्‍मू कश्‍मीर के लोगों के पास सिर्फ एक भारतीय नागरिकता ही रह गई है। पहले भारत के नागरिकों को स्‍पेशल राज्‍य का दर्जा प्राप्‍त जम्‍मू-कश्‍मीर में जमीन खरीदने की इजाजत नहीं थी।यानी कि दूसरे राज्‍यों के लोग जम्‍मू-कश्‍मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे। पर अनुच्छेद 370 के खत्‍म होते ही दूसरे राज्‍यों के लोग भी जम्‍मू-कश्‍मीर में जमीन खरीदने का अधिकार मिल गया है। जम्मू-कश्मीर को मिले विशेषाधिकार के तहत पहले जम्मू-कश्मीर की किसी महिला द्वारा भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह करने की स्थिति में उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता समाप्त हो जाती थी। जबकि इसके विपरीत अगर वह महिला पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह करती तो उस पाकिस्तानी व्यक्ति को जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाया करती थी। मगर अब चूंकि 370 को हटा दिया गया है तो जम्मू-कश्मीर के लोगों की दोहरी नागरिकता भी अपने आप खत्‍म हो गई है। इस हिसाब से अब अगर जम्‍मू-कश्‍मीर की महिला किसी दूसरे राज्‍य के व्‍यक्ति से विवाह करती है तो भी वो सिर्फ भारतीय ही कहलाएगी। अनुच्छेद 370 से प्राप्त विशेषाधिकार के तहत पहले जम्‍मू-कश्‍मीर के विधानसभा का कार्यकाल छह साल का होता था जबकि देश के किसी भी राज्‍य में किसी भी राज्‍य सरकार का कार्यकाल 5 साल से अधिक का नहीं होता है। ऐसे में देश के अन्य राज्‍यों की तरह जम्‍मू-कश्‍मीर में भी अब विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का होगा। अनुच्छेद 370 के कारण पहले भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते थे। पर अब भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख में भी मान्‍य होंगे।

कैसे निरस्त हुआ अनुच्छेद 370:

संविधान के अनुसार जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 (Article 370) को समाप्त करने का अधिकार जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को था। लेकिन मौजूदा हालात में अनुच्छेद 370 (Article 370) में ही निहित एक व्यवस्था के तहत इसे समाप्त कर दिया गया। संविधान के अनुसार भारत के राष्ट्रपति को धारा 370(3) के अंतर्गत पब्लिक नोटिफिकेशन से अनुच्छेद 370 को सीज करने का अधिकार प्राप्त था और वे जब चाहे अनुच्छेद 370 (Article 370) को खत्म कर सकते थे। बस इसके लिए राष्ट्रपति को जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की अनुशंसा चाहिए थी। चूंकि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का मतलब जम्मू और कश्मीर की विधानसभा है और संविधान सभा अब समाप्त हो चुकी है। ऐसे में संविधान सभा के सभी अधिकार जम्मू-कश्मीर विधानसभा में निहित थे। चूंकि वहां अभी राज्यपाल शासन है, ऐसे में एक अधिसूचना के जरिए जम्मू-कश्मीर संविधान सभा भंग करके उसकी सारी शक्ति संसद के दोनों सदनों को दे दी गई और फिर संसद में अनुच्छेद 370 के दो उपखंडों को समाप्त करने का प्रस्ताव लाया गया। संसद में हुई चर्चा के दौरान राज्यसभा में 61 के मुकाबले 125 वोटों से तथा लोकसभा में 70 वोटों के विपरीत 370 वोटों से बिल पास हो गया। इस तरह संसद से मिली मंजूरी और राष्ट्रपति की अधिसूचना के बाद अनुच्छेद 370 समाप्त हो गई।

370 पर सरकार को मिला कई दलों का समर्थन:

जम्मू-कश्मीर से जुड़ी अनुच्छेद 370 को हटाने के मोदी सरकार के ऐलान पर जहां कांग्रेस समेत कुछ विपक्षी दलों ने संसद में जमकर हंगामा किया तो वहीं केजरीवाल और मायावती जैसे मोदी के धुर विरोधी सरकार के समर्थन में खड़े नजर आए। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाने के संकल्प का बहुजन समाज पार्टी, बीजू जनता दल, AIADMK, YSR कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी ने समर्थन किया। ये वो पार्टियां हैं जो सरकार का हिस्सा नहीं हैं, फिर भी उन्होंने इस बिल का खुला समर्थन किया। इन पार्टियों के अलावा शिवसेना, अकाली दल और एनडीए के अन्य सदस्यों ने इस बिल के समर्थन में खुले दिल अपनी आवाज बुलंद की। पर बिहार में भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार चला रही जनता दल यूनाइटेड ने इस बिल पर चर्चा के दौरान राज्यसभा से वॉकआउट कर दिया। राज्यसभा में जदयू के 6 सांसद हैं, लेकिन उन्होंने सदन में सरकार के खिलाफ वोट नहीं किया।

370 पर कांग्रेस में मतभेद:
वरिष्ठ कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित क्षेत्रों में बांटने के केंद्र सरकार के कदम का समर्थन करते हुए अपनी पार्टी के रुख से अलग राय रखी। उन्‍होंने इस फैसले पर सरकार का समर्थन करते हुए कहा कि सरकार ने एक ‘‘ऐतिहासिक गलती” सुधारी है। उन्होंने आगे कहा कि यह राष्ट्रीय संतोष की बात है कि स्वतंत्रता के समय की गई गलती को सुधारा गया है। क्योंकि यह बहुत पुराना मुद्दा है और स्वतंत्रता के बाद कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं चाहते थे कि अनुच्छेद 370 रहे। जनार्दन द्व‍िवेदी ने कहा कि मेरे राजनीतिक गुरु राम मनोहर लोहिया शुरू से ही अनुच्छेद 370 का विरोध करते थे। मेरे व्यक्तिगत विचार से तो यह एक राष्ट्रीय संतोष की बात है। वहीं द्विवेदी के अलावा दीपेंद्र हुड्डा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अदिति सिंह सहित तमाम कांग्रेसी नेताओं ने अनुच्छेद 370 हटाने के पक्ष में बयान दिए। वहीं राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि जिन लोगों को जम्‍मू-कश्‍मीर का इतिहास और कांग्रेस का इतिहास पता नहीं है उनसे मुझे कोई लेना देना नहीं है। वे पहले जम्‍मू-कश्‍मीर और कांग्रेस का इतिहास पढ़ लें फिर कांग्रेस में रहें।

क्या है सरकार का प्लान
नई व्यवस्था के तहत केंद्र सरकार की कोशिश पंचायतों को मजबूत करने की है जिसके जरिए आम जनता तक पहुंच बनाई जा सके। इसके साथ ही केंद्र शासित प्रदेश होने का लाभ भी वहां के सरकारी कर्मचारियों को मिलेगा।

कश्मीरी पंडितों ने जताई खुशी:
कश्मीर घाटी से 1990 के दशक में विस्थापित हुए कश्मीरी पंडितों ने संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाये जाने का स्वागत किया है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि इससे क्षेत्र में शांति का माहौल स्थापित होगा और मूल स्थान पर सम्मान एवं गरिमा के साथ उनकी वापसी का मार्ग प्रशस्त होगा। दुनियाभर में समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली एक संस्था ‘ग्लोबल कश्मीरी पंडित डायस्पोरा’(जीकेपीडी) ने एक बयान में कहा है कि यह निर्णय भारतीय संघ की क्षेत्रीय, राजनीतिक और सांस्कृतिक एकता को मजबूत करता है।

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl