बना रही हैं बेटियां पश्चिम को आधार
बना रही हैं बेटियां पश्चिम को आधार
छोड़ के घुँघट लाज का, अपने ही घर द्वार।
बना रही हैं बेटियां पश्चिम को आधार।।
उन्हे पसन्द अब जींस है, नहीं सूट सलवार,
बना रही हैं बेटियां, पश्चिम को आधार।।
शर्म हया की बात पुरानी, शीष नवाना भूल गईं।
छोटे छोटे पहन के कपड़े, आज चली स्कूल गईं।।
अब तो वैलन टाइन मनाती, नही तीज त्योहार।
बना रही हैं बेटियां पश्चिम को आधार।।
आंचल में थी कभी सादगी, पहन सलोनी लगती थी
मर्यादा का दीप जलाकर, खुद बाती बन जगती थी।
भूल गयी है सीख वो देना, वृद्धों को सत्कार
बना रही हैं बेटियां पश्चिम को आधार।।