यह प्रेम चीज क्या है?
यूं ही बैठे-बैठे खयाल आया,
मन में बस एक सवाल आया।
आखिर यह प्रेम चीज क्या है?
जिसके पीछे दुनिया दीवानी हुई जाती है।
मां की छाती से जो टपकता है,
पिता के बाजुओं में जो पलता है।
भाई के मधुर स्नेह से जो पनपता है,
या जो राखी बनकर कलाइयों पर सजता है।
आखिर यह प्रेम चीज क्या है?
बागीचे के फूलों सा जो महकता है,
या नदी की अल्हड़ रवानी सा जो बहता है।
चांदनी रात में टिमटिमाते तारों जैसा,
या फिर मखमली घास के बिछौने जैसा।
आखिर यह प्रेम चीज क्या है?
कभी जो राधा ने किया मोहन से,
या मीरा दीवानी हुई जिसके कारण।
शबरी के बेरों में जो मिला करता है,
या कि यशोदा के आंचल में जो पलता है।
आख़िर ये प्रेम चीज क्या है?
प्रेमिका के आलिंगन से महकता अनुराग,
या फिर वासना की आग लगाता दानव।
आत्मा को जो तृप्त किया करता है,
या कि जो आत्मा को ही कुचल देता है।
आखिर यह प्रेम चीज क्या है?
— कल्पना सिंह