ग़ज़ल
हिंदी है मनभावन गंगा,
हिंदी सुंदर सावन गंगा।
हिंदी भाषा अजर- अमर है,
हिंदी सदा सुहागन गंगा।।
हिंदी सबकी पावन वाणी,
संस्कारों का उपवन गंगा।।
एक सूत्र में बाँधे हिंदी,
ज्यों बहती है वन-वन गंगा।
मधुर मातृभाषा है अपनी
सबको देती जीवन गंगा।।
दीन – दुखी इन्सां की वाणी,
कल्याणी मनभावन गंगा।।
जन्मदात्री प्रसविनि माता!
‘शुभम’ है हिंदी पावन गंगा।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’