गीतिका/ग़ज़ल

कहाँ आ गए हम

दिल को लगाके कहाँ आ गए हम?
तुम्हें आजमा के कहाँ आ गए हम?

ख़ुशी है ज़ियादा नहीं ग़म भी कम है,
रिश्ते निभाके कहाँ आ गए हम?

बड़े दिलजले हैं मुहब्बत शहर में,
पते को भुलाके कहाँ आ गए हम?

सुना था सभी को बड़ा दर्द देती,
वही चोट खाके कहाँ आ गए हम?

वफ़ा नाम है पर वफ़ाई नही है,
इसी को बता के कहाँ आ गए हम?

जले दीप जो थे उजालों कि ख़ातिर,
सभी को बुझाके कहाँ आ गए हम?

सताते नही थे कभी ख़्वाब हमको,
उन्हें भी सताके कहाँ आ गए हम?

बड़ी तीरगी थी निगाहों में जिनकी,
निशाना बनाके कहाँ आ गए हम?

कभी टूटते भी कभी छूटते भी,
मग़र मुस्कुरा के कहाँ आ गए हम?

— सौरभ दीक्षित मानस

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) [email protected] जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,