कहाँ आ गए हम
दिल को लगाके कहाँ आ गए हम?
तुम्हें आजमा के कहाँ आ गए हम?
ख़ुशी है ज़ियादा नहीं ग़म भी कम है,
रिश्ते निभाके कहाँ आ गए हम?
बड़े दिलजले हैं मुहब्बत शहर में,
पते को भुलाके कहाँ आ गए हम?
सुना था सभी को बड़ा दर्द देती,
वही चोट खाके कहाँ आ गए हम?
वफ़ा नाम है पर वफ़ाई नही है,
इसी को बता के कहाँ आ गए हम?
जले दीप जो थे उजालों कि ख़ातिर,
सभी को बुझाके कहाँ आ गए हम?
सताते नही थे कभी ख़्वाब हमको,
उन्हें भी सताके कहाँ आ गए हम?
बड़ी तीरगी थी निगाहों में जिनकी,
निशाना बनाके कहाँ आ गए हम?
कभी टूटते भी कभी छूटते भी,
मग़र मुस्कुरा के कहाँ आ गए हम?
— सौरभ दीक्षित मानस