हिंदी दिवस पर मिर्ची का तड़का
कल हिंदी दिवस मनाया गया। सच मे बहुत अच्छा लगा कि चलो 1 दिन हिंदी को याद तो किया गया। प्रायः हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। अपने विचार सोशल मीडिया के माध्यम से दुनिया को बतलाते है। ये तो बहुत अच्छी बात है।
कुछ पोस्ट देखी जिसमे कहा गया FB पर नाम हिंदी में लिखो, कुछ बोले हिंदी मां है तो अंग्रेजी भाई। एक मशहूर कवियित्री ने कहा उर्दू मौसी है। चलो सब ठीक है । सब मान लेते हैं।
लेकिन एक बात समझ आई कि अँगेजी न भाई है और न हीं चाची, ये तो भौजाई है। जो सबको रिझाती है। ये वो पराई लड़की है जो दूसरे घर से आकर हमे जोड़ती हैं लेकिन दिक़्क़त कब हो जाती है जब हम अपनी को अच्छी दिखाने करने के चक्कर मे दूसरे की बुराई करने लगते हैं। क्या जब दूसरा ख़राब होगा तभी आप अच्छे हो सकते हैं?
बहुत सी संस्थाओं को हिंदी के लिए कार्य करते देखता हूँ तो गर्व होता है पर वही अपने बच्चों को कॉन्वेंट में पढ़ाते हैं ताकि वो अच्छी अंग्रेजी बोल सकें।
ये तो बहुत अच्छा है इससे विकास के रास्ते खुलते हैं। हमारे समाज मे बहुत से उन पंडित जी की तरह हैं जो कथा कहने में बैगन की 1000 बुराइयों को बताते हैं और शाम को घर लौटने पर बैंगन ही ख़रीदते हुये घर पहुँचते हैं।
हमारे सामने कोई हिंदी बोलता है तो बहुत कम लोग उसे सराहते हैं, अधिकतर लोग हीन दृष्टि से देखते हैं। जबकि किसी पर रौब झड़ना हो तो धारा प्रवाह अँगेजी झाड़कर छाती चौड़ी कर लेते हैं। लगभग हम सब कभी न कभी ऐसा ही करते हैं।
क्या हिंदी का विकास ऐसे संभव है????? कदापि नहीं पर जिस दिन दिखावा छोड़ हम सच मे हिंदी के लिए सोचने लगे उस दिन हर रोज़ हिंदी दिवस होगा। विदेशों में संस्कृत और हिंदी के प्रति झुकाव बढ़ा है वो हमारे वेद-शास्त्र पढ़कर नई-नई खोज कर रहे हैं और हम दूसरी भाषाओं को कोसकर हिंदी दिवस की बधाईयां दे रहे। सिर्फ़ बधाई देने से हिंदी का भला हो जाए तो 2-4 किलो बधाई मेरी तरफ़ से भी ले लो।
बस एक बात याद रखिये हमे आधुनिकता के साथ अपनी भाषा, अपनी संस्कृति को बचाये रखना होगा नहीं तो हम हिंदी को विदेशी किताबों में पढ़कर अपनी आगे की पीढ़ियों को ये बताएंगे “बहुत समय पहले ये हमारी हुआ करती थी।”
— सौरभ दीक्षित मानस