जज्बात
जज्बातों का जब कोई मोल नहीं ,
बाजार है ये यहाँ कोई जोर नहीं ।
बिकते हैं हर मोड़ पे ईमान ओ आँसू
मुस्कराहट का यहाँ कोई दौर नहीं ।
फ़र्ज और कर्ज में खो जाते हैं अरमान
वफादारी का यहाँ कोई छोर नहीं ।
अदब की देते होंगें फ़रिश्ते भी मिसाल
इंसानियत का यहाँ कोई तोड़ नहीं ।
लावारिस हो चुका है गणित ऐ रिश्ते
व्याकरण का यहाँ अब कोई चोर नहीं ।
बहाब है आँधियों का चारो तरफ बहता
पुरवाईयों का यहाँ कोई शोर नहीं ।
समुंदर और नदी में लगी है कुछ शर्त ऐसी
झरनों की यहाँ अब कोई होड़ नहीं ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़