लघुकथा

#और_वो_चला_गया…..

#और_वो_चला_गया…..

यार रौनक! कितना बत्तमीज है विमल, गुंडों की तरह कॉलेज में घूमता रहता है। न पढ़ता है और न किसी को पढ़ने देता है।

क्या करोगी सुचि? वो अमीर बाप की औलाद है। एक भाई वकील है और दूसरा पुलिस वाला। और वैसे भी तुम्हें क्या मतलब? अपना कॉलेज करो। दुनियादारी के चक्कर मे मत पड़ो।
वो बात नही है, ऐसे लोगो को देखकर गुस्सा आता है। अगर नही पढना तो घर बैठें। यहां आकर दूसरों का दिमाग़ क्यो ख़राब करते हैं।

तुम भी ना सुचि! सारी दुनिया का ठेका लेकर रखी हो। ये लो घंटी बज गयी केमिस्ट्री की क्लास है ना? आज सर कैमिकल कंपाउंड पढ़ायेंगे। जल्दी चल नही तो बैनर्जी सर फ़िर बोलेंगे “आज क्यूँ लेट हुआ, हुन्नन… बोलो, कल से होगा तो क्लास के बाहर, हा हा हा….

हाँ चलो, वैसे भी ऐसे फ़ालतू लोगो के बारे में सोचकर दिमाग़ क्यो ख़राब करना?

रौनक आज की क्लास अच्छी हुई । मिस हो जाती तो एग्जाम के लिए परेशानी हो जाती, हैना?

हन्नन, इस बार केमिस्ट्री में अच्छा करना है। पिछले सेमेस्टर में परसेंटेज गड़बड़ हो गया था।

चले आते है गुट बाज़ी करने, ऐसे लोग किसी के नही होते रौनक! ऐसे लोगो से बस अपना काम निकालो और आगे बढ़ो।

लो अब विमल कैंटीन में भी नही आ सकता क्या? क्यों उसपर अपना दिमाग़ ख़राब करती हो? जाने दो, जो मर्ज़ी आये सो करे तुम इग्नोर किया करो।

हाँ! सही कह रहे। जानते हो कल कॉलेज में वो कुर्ता पहनकर आया था । कुर्ता साइड से फटा था हा हा हा…

सुचि तुम भी ग़ज़ब हो। जब उससे मतलब नही तो कुछ भी करे, करने दो। बर्गर जल्दी ख़तम करो फिर निकलते हैं। आज पापा के साथ मार्केट जाना है।

कितना चाहती है सुचि हमको, ऐसा प्यार करने वाला इस दुनिया मे किसे मिलता है? सच मे रौनक तू बहुत क़िस्मत वाला है। कल उसका बर्थडे है उसे शादी के लिए प्रपोज़ कर ही दूँगा। अरे यार! एक हाथ मे बुके और फ़ोन बज़ गया अब सुचि के फ्लैट की डोर बेल कैसे बजाऊँ?
चल पहले फ़ोन उठा और देख किसका क्या गत गया फ़िर आराम से सुचि से बतियाना। समझा रौनक…
अरे! ये क्या…?????

अपना ख़्याल रखना डियर, आज सच मे मज़ा आया, अगली बार लिपिस्टिक कोई अच्छे फ्लेवर की लगाना, हा हा हा….

बाय विमल, लिपस्टिक में फ़्लेवर नही आते और अग़र आते है तो जो तुमको पसंद हो ला देना लगा लुंगीं। यहां इतने खूबसूरत फूलों का बुके कौन फेंक गया..??

आज की मूवी मज़ेदार थी विमल! अच्छा यार पता है ये रौनक कहाँ है? दिखा नही 20 दिनों से।
हाँ सुचि! कोई बता रहा था वो किसी को चाहता था पर वो किसी और को। उसे पता चल और वो चला गया……

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) [email protected] जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,